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Vakil Report 10

श्री गौपालजी सहाय छै

श्री महाराजाधिराज श्री महाराजा श्री महाराजा जै सिघजी

स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराजाश्री

चरणकमलांनु षांनांजाद षाक पाय पा॰ राय जगजीवन दास लिषतं तसलीम बंदगी अवधारजौ जी | अठा का स्माचार श्री महाराजाजी रा तेज प्रताप थे भला है श्री महाराजाजी का सीष समाचार सासता प्रसाद करावजौ जी | श्री महाराजाजी माइत हे धणी हे | श्री परमेसुर जी री जायगा हे | म्हे श्री महाराजा जी रा षांनांजाद बंदा हां | श्री पातिसाहजी श्री महाराजाजी थे महरबांन हे | श्री महाराजाजी सुष पावजौ जी पांन गंगाजल आरोगण रा जतन फुरमावजौ जी |

अप्रच श्री महाराजाजी रा परवांनां इनायत षांनाजाद नवाजी रा आयां घणां दीन हुवा सु बंद नवाजी रा परवांनां सासता इनायत कीजौ जी |

श्री महाराजा सलांमत - चार बरस हुवा षांनाजादां सुं वकालत तगीर कर गरजमंदी री अरज सुं केसोराय ने फुरमाइ थी सु उस सुं ऐक कांम न हुवा नोबत की अरज कराव इही न्ही अर झुठ ही हजुर ने लिषो ज मे अरज कराइ सु मंजुर हुइ षरची आवे तो नगोरो भेज दुं | फेर अरज भ ता पर नामंजुर भ तब हु झुठ हजुर कौ लिषी ज अरज मुंजुर हुइ है षरची आवे तो नगारो भेजुं ती उपर श्रीजी षरची नोबत की भेजी सु घर मे थे लयां घर बेठ रहो फेर वाही पाप ते मर गयो श्रीजी आय संसार की भलाइ मे हे तीस सुं आय नवाजस कर उस के बेटे उपर ही बहाल राषी छह सात महीने इय कौ भी हुवे ये ऐक कांम इस सुं भी सरंजांम न पाया सु साच हे | या छोकरे कौं दरबार मे कोन पुछे हे सु षांनांजाद कौं तो इय की हकीकत लिषण सुं मतलब न्ही पण श्री महाराजाजी की सरकार का सब कांम बंद पड़ा हे तीस की भी थोड़ी फीकर हे पण नोबत को तलास मुतलक श्रीजी छोड बेठे हे अर श्री महाराजा के तलास मे तो कमी न्ही पे दर पे साहजादा के नीसांन भेजे हे |

पण श्री महाराजा जांणे हे इ लड़का सुं अठे तदबीर कुछ बणे न्ही इ को कहो कोण मांने एतबार सुष न माने तब ओर बात कोण मांने | सु यो षांनांजाद ने बडो दुष हे ज अब ताइं नोबत न लीजे हे | सु कोण तदबीर हे चार बरस तो इ लड़का के भरोसे रह सब कांम बरहम कीयो अर कीजे हे | अर नोबत कौ बरहम कीजे हे सु इ स्मया मे तो नोबत हर कही ने मीले हे | रांम सिघ हाडो कोटा को धणी ती ने नोबत मीली (---------) ती या को घणी तीने नोबत हे | सु श्री महाराजा तो ही दुवां का सुरज हौ | आंबेर को दरबार हे सु श्री महाराजा ने अब ताइं नोबत न होय सु अजब हे सु श्री महाराजा तो प्रभु हे परवाह नही अर हजुर मे बडा बडा ठाकुर हे बडा बडा मुतसदी हे सु वां ने नीद भुष कौ कर आवे हे पण वे भी काइं करे वे उठा सुं जतन तलास घणां ही कर भेजे हे पण अठे दरबार मे पेस ले जाणवालौ कोइ न होय तो वे ठाकुर भी हजुर का काइं करे |

श्री महाराजाजी को लूण षायो हे ती सुं षांनांजाद का छाती जले हे कांम बिगड़ता देष देष हर बार अरजदासत करुं हुं | आगे भी श्रीजी दरबार की षबरदारी फुरमावे तो भलां हे पछे जो षातर मुबारक मे आवे सु सही |

केताक दीनो सुं पातिसाहजी की हजुर मे दीवान बकसीयां को अषतयार कुछ न्ही षोजां को अषतयार हे जो दरबार रोज कर बेठे तो दीवान बकसी आवे सु तो दरबार करे न्ही (--) नांमे पांच चार दरबार होय दोय चार घड़ी बेठे इतरा मे कही अरज की कोइ करतो ही रहो अर दरबार उठ षड़ो रहो अर षोजे तो षाबगाह मे आठ पहर हाजर ही रहे ती सुं षानाजाद अरज राजा उदोत सिघजी की तरफ सुं कराइ ज षांनांजाद का मतालब हाफज अंबर अर न करो करे अर वकील भी हाफज के हवाले होय ता पर मंजुर फुरमाइ सु सब मतलब राजा के हाफजजी ने सरंजांम कर दीया अर षांनांजाद रात दीन वां सु ही लगो रहे हे बोहत महरबांनगी राषे हे | आठ पहर पातिसाहजी ने उठावे बेठावे हे सुवावे हे हाथ पाव धुवावे हे हजरत का तो पाव केती मुदत सुं रहा सु उठा बेठी सुं रह गये चलन हलन सुं रह गये सु श्रीजी जांणे ही हे सु अब षोजां के बस हे इतनां मे ही सब समझ जाणो जी | सु अब हाफज अबर ने षीदमत-गार षां को षीताब दीयो दोढी को नाजर कीयो नीपट महरबांनगी हे यां बरसां मे केतां ही ने इजाफा मनसब नोबतां दीवाइ | अबार राम सिघ हाडा ने पांच सदी को इजाफो वां ही दीवायो अर राजा उदोत सिघजी सुं इषलास राषे हे ती सु राव दलपत इजाफो हजरत देता था सु बरहम कर दीयो अरज की सब बुंदेलों का सरदार राजा उदौत सिघ हे सो तीन-हजारी हे सो ही तीन-हजारी यह हे अब इजाफा इस कौ दीजेगा तो राजा कौ भी देनां जरुर होय्गा या इस कौ भी न दीजे पातिसाहजी फुरमाइ पहली राजा कौ देगे तो इस कौ भी देगे न्ही तो न दे | जुलफकार षां वांगनगीरो फते कर आय राव दलपत का इजाफा के वासते अरज की तब हुकम हुवो कटारी दो इजाफा तो इन के ओड छे के राजा कौ दे तब इस कौ दे तिस पर राव मनसब छोड बेठो कटारी न ली | सु जुलफकार षां बोहतेरी बार अरज की पण मंजुर न हुइ | सु आज षोजां कौ एसो काबु हे | सु वकालत तो श्री महाराज वेही का बेटा उपर राषणी षातर मे पसंद आइ हे तो वेही पर बहाल राषजे पण नोबत को कांम वेसे ही होतो जांणजे हे तो मुबारक हे | ओर भी महीनां दोय चार देष लीजे अर नोबत तुरत ही लेणी हे तो षांनाजाद ने ऐक नोबत के वासते ही फुरमाय देषजे पहली हुंडी मांगुं न हुं ऐक दोय षलीता कीमषाब का अर ऐक परवांनो षांनाजाद के नांव षुफया आवे अर साहजादा को नीसान षीदमतगार षां के नांव आवे अर षीदमतगार षां के नांव न लिषे तो महरम षां के नांव आवे अर षरच की साहुकार की टीप आवे तो छाने छाने ही वकील ने षबर भी न होय सु ऐक छह सात महीनां षांनाजाद को भी कीयो देषजे वकालत तो श्रीजी की हे ही षांनाजाद नमक परवरदा हुं अर श्रीजी के प्रताप से अर श्रीजी के नांव से रोटी कपड़ो मील रहे हे | ये छाती जले हे ज षांनाजाद दरबार मे बेठो अर यह सरबोपर कांम नोबत को सु पड़ रहो हे | सु अजब हे कहे अर दरबार का लोग षांनाजाद ने बेस उर कहे हे ज सायद श्री महाराज थांने नाकाबल जांणे हे जयो ऐक भी कांम न फुरमावे हे | ती सु गुस्तताषी दे अरजदासत की हे जी | सो तकसीर माफ होय अर कही कांम को न जाणजे हे तो आप को नवाजस करो जांण परवांनां सु तो सरफराज हुवो करे तो इही मे सरबलंदी जांणे जी |

सं॰ 1762 सांवण बदि 5 सुक्र |||||