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श्री रांमजी
श्री महाराजाधिराज सलामत
हकीकति तमाम आगीली अरजदासति करार मी॰ चैत सुदि की भेजी है ती सौं अरज पहुंची होयगी जी |
श्री महाराजाजी सलामति - पहैली तौ पातसाहजी के लहौर चलने की बहौत ताकिदि (sic!) थी जो वाका की फरद सौं अरज पहुंची जो समस षां वा कुतब षां कांम आऐ | फेरि अरज पहुंची जो ऐक लरै है ऐक कांम आया तब पातसाहजादे रफी सां बहादर कों फुरमाया जो तुंम हुकम पातसाहजादे जहांदार साह कौं पहुंचावो जो तुम लाहौर की तयारी करौ हम तुम कों गुरू के सिष्यौं की तम्बीह के वासतै भेजै है | सो रदबदल द-म्यांन (sic!) है जो ठाहरैगी | सो अरज पहुंचाउंगा जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - भुवपति प्रकास राजा नाहनि का जो महाबति षांजी के कैदि था तिस के वास्तैं चेलां पातसाहजी की त्रफ सौं हुकम पहुंचाया जो इस के तांइ गुरू वा का पिंजरा षारदार है तिस मै डारौ तब महाबत षांजी दरबार जाय पातसाहजी सौं अरज करी जो वह बे-तकसीर है व उस के मुलक मै सौं गुरू बाहिर निकसि गया तब पातसाहजी फुरमाया जो उस कों सजाय न करौगे तौ सब जिमीदार सोष होय जांयगे | इसै षाह न षाह सजाय करौ तब फेरि महाबत षांजी अरज करी जो उस पिंजरे मौ कांटे बहौत सषत हैं | डारते हीं ऐक घड़ी मौ मरैगा | तब पातसाहजी फुरमाया मरि जायगा तौ (-----) तब महाबति षां फेरि अरज न करी पातसाहजी (-) बार सौं उठे | तब महाबत षां फेरि अरज करी | तब पातसाहजी फुरमाया जो पिंजरा के कांटे मोड़ि द्यौह अर हुकम पातसाहौं का राषौ उस कौं पींजरा मै डालौ | तब चेला आय कांटे मोड़ि पींजरा मौ डालि गया | सो अब तक तौ जीवै है | जो हकीकति होयगी सो अरज पहुंचाउंगा जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - पातसाहजी की या षबरि है जो कोइ तौ कहै है जो जहांनाबाद कों चलैगें | कोइ कहै है जमुंनाजी के किनारे कोइ दिन रहैंगे | सो ठीक पड़े अरज पहुंचाउंगा जी | और षत हदायतुला षांजी कौं भेजा था सो आय पहुंचा है | सो मारफति पचौली जगजीवनं दास की पहुंचाया है सो जुवाब पाछा थे भेजौंगा जी | और षत नवाब महाबति षांजी का सुजायत षाजी कों लिषाय भेजा है सो नकल सौं सब हकीकति अरज पहुंचैगी जी | और षत महाराजा अजीत स्यंघजी का भेजा था सो पहुंचा सो रदबदल आय पर्यां नवाब महाबत षांजी कों मालुम करौंगा जी |
श्री महाराजाधि सलामति - प्रगने मेड़ता का इजारा का रुपया स्यालु का बाकी थे अर चेलां की तनषाह मौ व प्रगना था तब नवाब महाबत षांजी कों चेला जाय दबाया | तब कहै ब-ति-सु-(--)-ति बहौत हुइ तब नवाब महाबत षांजी भंडारी कों कह्या जो चेला परेसांन हौ तुरत रुपया हजार पांच तौ आज द्यौह जो उन की दिलासा होय | तब भंडारी रुपया हजार पांच वैही घड़ी चेला के हवाले कीया औ (sic!) जु भी चेला रहता रुपया वासतैं तलब करि रह्यौ है जो ठाहरैली सो पाछा थे अरज लिषौंगा जी |
अर बंदे सो भी आय चेलौं तगादा कीया जो देवती सांचारी भी हमारी तनषाह मौ है | सो तुम भी रुपयां की निसां करौ तब मै उन कों जुवाब दीया जो देवती सांचरी नवाब महाबत षांजी बुलाकी चंद अमीन भेजा है | मै वाफिक नही जो नवाब के क्या आया क्या बाकी है | तब चेलौं नै नवाब जाय दबाया तब नवाब नै रुपया तेīस हजार चेला नै दीया | सो षात्र ममारक मौ आवै तौ जो फसाले स्यालु मौ प्रगना बहात्र का रुपया बुलाकी चंद नै दीया हैं | सो बंदे कौ लिषी भेजीज्यौ जी |
मीति चौत (sic!) सुदी 9 संवत 1768 संनीसरवार |||||