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Vakil Report 282
श्री गोपालजी सत छै जी
|| श्री महाराजाधिराज महाराजाजी श्री
|| मीरजा राजा सवाइं जै सिघजी
||:|| सिधि श्री महाराजाधिराज महाराजाजी श्री | चरनकमलानु सेवग षानाजाद पंचोली
जगजीवन दास लिषतं तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का स्मांचार श्री महाराजाजी
का तेज परताप कर भला है | श्री महाराजाजी रा सीष स्माचार सासता परसाद करावजो
जी | श्री महाराजाजी साहब है धणी है | श्री परमेसुरजी री जायगां हैं | म्हे
षानाजाद बंदा हां | गंगाजल पान आरोगण रा घणां जतन फुरमावजो जी | श्री पातसाहजी
श्री महाराजाजी सै महरवान है | श्री महाराजाजी घणो सुष पावजो जी |
| श्री महाराजाजी सलांमत - दरबार का स्माचार तफसीलवार पै दर पै आगै अरजदासत
करी है तां सै अरज पोहोती होसी जी |
श्री महाराजाजी सलांमत - नवाब कुतबुल मुलक आप की हवेली मै दीवान कीया बैठा
था | सु सरै दीवान साह अणदराम नै व षांनाजाद की भांत भांत सै तसलै फरमाइं जु
राव बुधसिघजी कै वासतै पातिस्याहजी सै अरज कर ठहराइ है | अब पातसाहजी दीवान करै
अर रावजी कु वतन की सनद दांपण सनद देण पहली श्री मीरजा राजाजी हजुर आवै तो मवफक
करार कै आंवौहीला तब साह मजकुर अरज करी जु श्री महाराजाजी को भी यो ही इरादो
है जु रावजी कै नाव सनद आवै अर रावजी नै बुदी बैठाय अर हजुर जांवा सु सनद यो-हो-चां
(?) पाछै हजुर आवसी |
श्रीजी सलांमत - अब ताइं नवाब छांनै बातां करै था अर अबै सरै दीवान इ भांत
फुरमाइ है जी |
श्री महाराजाजी सलांमत - पातिस्याहजी नै बोहोत बरसां सै भगंदर को आजार है
सु पाणीपथ की तरफ पधारा तठै म्हे व सरदी बोहोत हुइं ती सु आजार बसेष होय आयो
सु फीरंगी इलाज करै है ऐक सुराष मै तो बती जाय है ऐक सुष चीकै है ती सु बसेष
आजार है पण य्यां दीना मै तो फुरसत है दीन दीन फुरसत होती ही जाय है सीताब
आछा होसी जी |
|| महाराजाजी सलांमत - महाराज श्री अजीत सिघजी की तरफ सै अठै बीरध मान (?)
पोहत है ती कै लीषो आयो जु डोलो अज्मेर आयो सु अज्मेर को सुबैदार मवाफक हुकम
कै सांमोह गयो सु डोलो सीताब आसी | सु ब्याह कै वासतै षबर है सायसत षां की
हवेली मै व अजद षांजी की हवेली मै ब्याह होय अर महाराजा अजीत सिघजी को जसोतपुरा
का हवालदारां तै लीषो आयो है जु जसोतपुरा की हवेली कौ सुफैदी कराजो आपणी हवेली
मै ब्याह करस्यां | सु पुरा का हवालदार म्हाराज का हुकम मवफक हवेली के सुफैदी
करावै है डोलो आया पाछै जैठ ही ब्याह होसी सु पाछां सै अरजदासत करस (sic!) जी
|
श्री महाराजाजी सलांमत - दाउद षां नै नीकाल देबा की अर बुरहांनपुर मै अमल
करबा की नवाब अमीरुल उमराव की अरजदासत आइं अर लीषो है इ नै नीकालन देतो तो
इ बात मै म्हारी बदन कसी थी अर पातिस्याही बंदबसत मै षलल थो | अबै मनसब को
इसतीफा भेजो है जु उमैदवार हु मनै मका को हुकम होय मकै जांउ अर कुतबुल मुलक
नै भी षत भेजो है | सु कुतबुल मुलक वा अरजदासत व आप को षत बजनस राय टेक चंद
अमीरुल उमराव का वकील कै हाथ दे पातिस्याहजी नै गुजरानी पातिस्याहजी पढ अर
षुसवकत हुवा अर कुतबुल मुलक नै षास दसषतां रुको लिषो जो हंम पातस्याह अर तम
वजीर षुदाय नै बणाया है | हमारै अर तुमारै दोनु भायां कै बीच षुदाय षुदाय का
रसुल कुरान बीच है तुम हर भांत षात्र ज्या राष मुलक का बंदबसत करो तुमारी षात्र
मै भलां आवै | सु क-रो-(----) नै राषो दुर कीया चा-हो ती नै दुर दरो अर अमीरुल
उमराव नै फरमान व सीरपाव जवाहर व हाथी इ फतेह की भेजी अर फरमान तयार होय तब
हजुर लावो जु म्हे षास दसषतां लीषणो है सु लीषा अर जी हराम नमक नै यो तुफान
कीया था सु पसेमान होयगे अर उस पठाण जाहल कु अमीरुल उमराव की षात्र मै आवै उठै
राषै षात्र मै आवै इहां भेज दे अर बुरहानपुर की सुबादारी दाउद षां सै तगीर करी
अषतीयार सारो अमीरुल उमराव को ही रहो अर षान दारां की मोहर सै हसबुल हुकम दाउद
षा नै पहोच्या था अर वां हसबुल हुकमां की नकल दाउद षां आप इ मोहर सै अमीरुल
उमराव पास भेजी थी | सु अमीरुल उमराव पातिस्याहजी की हजुर भेजी सु अठै षां दोरां
कुतबुल मुलक आगै कुरान पर हाथ धर अर नट गयो जो मै न भेज्य तुरांनां तु- ओ (----)
कर तो हमत करी होसी दुसरै दीन अमीरुल उमराव की अरजदासत बेटा हुवां की व नजर
हजार मोहर हजार रुपीया आया अर लोगां अठै कुतबुल मुलक की नजर कीवी |
|| श्री महाराजाजी सलांमत - श्रीजी षत अबदुला षा नै व षान दोरा नै व राजा
रतनचंद नै सह अणदराम कनि भेजा था सु गुजरानां | श्री महाराजाजी सलांमत - नीजांमुल
मुलक अब ताइं जागीर पाइं न्ही ती सु दोय अढाइं हजार सुवार तो आप का अर हजार
सुवार बेटा का घर का चाकर था सु सारा बर-तरफ कीया अर असवार सै दोय चाकर राषा
तब नवाब कुतबुल मुलक कहाय भेजो जागीर पासुं तब फेर राषसुं | || श्री महाराजाजी
सलांमत - तकरब षां षानसांमा कै जवाइं परगना सीहनंद को इजारो बावन लाष रुपीया
बेइ ले गयो थो सु परगनो मजकुर गुरु का सबब सै वेरान है ती सु मवाफक करार कै
रुपीया पुरा पातिस्याही षजानै न-भरा ती सु अली अहमद षां आगै फोजदार थो ती नै
ही फेर फोजदारी हुइं जी |
|| श्री महाराजाजी सलांमत - नवाब षां दोरान मीर बकसी को नाय बहुवो हे तब सै या मुकरर हुइ है जु जीतरा मनसबदार इ पातस्याह का अहद मै नो सरफराज हुवा है तां नै दस्तक दाग की व चोकी की बीना पातिस्याह जी सै अरज कीया न दां अर जो दसतक दाग की कै व चोकी कै वासतै इलतमास लीष दे है ती उपर न तो दसषत करै है न पातिस्याहजी सै अरज करै नवाब अमीरुल उमराव चालां पाछै च्यार मनसबदारां की इलतमासां उपर बर-तरफी का दसषत कर भेजा है ओर दसषत अब ताइं न कीया है न मीसल गुजरनै है बकसी-गरी को काम कुछ न करै है सु न जांणजे यां का दील मै काइं मतलब है | मी॰ भादवा सुदि 11 संवत 1772 |||||