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Arzdasht 308

श्री महारांजाधिराज सलामती

भंडारी षीवसी को साहीजादै अजीम सानजी वा नवाब षान षाना वा महाबत षांजी जवाब साफ दियां जो बीना पातसाह की हजुरी आयां दोन्यौं रांजो की अरज कुछ न कीइ जाय तब भंडारी डेरै आय अर बंदा कों बुलाय मसल्हती करि जो बीना रांजों कै आया हजुरी मै कुछ मनसुबा बणता नाही तब बंदै कही जो काबील की मोकुफी की नीसाण वा दोन्यों नवांबा का षत ज्यौ बणै ज्यौ करांया चाहीये तब बंदै भंडारीजी सौ पुछ्यां जो महारांजा अजीत स्यंघजी नै अरजदासति बहोत करी छै जो आप बेगा पधारै सो महारांजाजी साभरि पधार्या होयला | श्री महारांजाजी सलामती - सरकार मै महारांजा अजीत स्यंघजी की षबरी आइ होय तथा आंवै सो बंदा नै इनायत हुवा करै जी | श्री महारांजाधीराज सलामती - जै महारांजा अजीत स्यंघजी पधरै तो दीन दस पदरा की सीताबी करणा मनास (sic!) नही अर जै उन का पधारबा मै ढील होय अर वै न पधारै तो षात्री मुबारक मै पसंद आवैलि | सो श्रीजी करैला जी | ओर ऐठा का दरबार की हकिकती बंदै आगै अरजदासती मुकरर करि है जो ऐठा का दरबार का रंग ओर ही है जी | श्री महांरांजाजी सलांमती - पातसाहजी को कुच साहजांहानाबाद कों हुवां अर भंडारीजी जो हजुरी मै अरज करी आया थां सो वह रंग कुछ यहा दीषै नही अर न जाणीये कुछ मै ही न सझु हुं सो जो लुण-षाणै की सरत है सो बंदै अरज पहुचाइ अर पहुचावै है पातसाही का रंग बहोत बुरां है जेती ढील लागी अर लागै है सो षरांबी है जी | बंदा तो येति अरज न लीषतां पणी लुण-षाणै कि सरत यह नही जो षावद नै ज्यौ किज्यौ अर जन लीषीये ती सौ बंदै अरज लीषी छै जी | उमेदवार हुं जो तकसीर माफ होय जी अर भंडारिजी भी श्रीजी नै अरजदासती करता ही होयला जी | अर बंदा सौ तो पंचा (?) मै सोगंद षाय वा कहै है जो मै महांरांजा अजीत स्यंघजी नै वा श्रीजी नै आबा कै वासतै बहोत ताकीद अरज लीषी है जो बीनां आया क्यौ कांम होणा नही सो अरजदासती उन की हजुरी पहुचति ही होयली जी | श्री महारांजाधिराज सलामती - अबै जो आप बीचारैं सो सीताबी कीज्यौं ढील का मोसर रह्या नही है जी | मीती फागण बदी 12 सनीसरवार षबरि पाइ जो नवाब षान षाना कै नाक मै आजार ज्यादा हुवां तब भंडारी षीवसी वा बंदा नवाब महाबत षाजी कै डेरै गयां महांबत षाजी अंदर थे तब षोजे कै हाथी अरज करांय भेजी जो हुकम होय तो बड़े नवांब कों देषी आवैं तब नवाब षोजे के हाथी कहाय भेज्यां जो रांजा अजीत स्यंघ कहा ताइ आवे तब भंडारी अरज करांइ भेजी जो मेरै आदमी मेड़ता सौ कुच कराय आंये है तब नवाब कहाय भेजी जो झुठ सौ (--) न नीसरैगां तुम साच बोल्या करों तब भंडारी सोगंद षाइ अरज करांइ जो या बात साच है तब नवाब अंदर सौ कहांय भेज्यां जो तुम बड़े नवाब कों देषी आवों काल्ही तुम हमारै पासी फेरी आइयो तब भंडारी वा बंदां बड़े नवाब कै गयां सो नवांब कै आजार ज्यादा थां ती सौ नाक कै नीचै जोक लगाइ थी सो मुजरे का उकत न हुवा जी | अर अंदर ही मुजरा कहाय भेज्यां तब हुकम आया जो तुम अबांर डेरै ही जावो तब डेरै आया जी | अर नवाब कै उपरी षैरानी कै वासतै भंडारी वा बदां (sic!) रुपया ले गया थां सो फेरी ल्याया जी काल्ही फेरी जाहिगे तब गुजरानैगे | श्री महारांजाजी सलामती - बंदै आगै भि अरज लिषी छी अर अब भी अरज पहुचावै है जो महारांजा श्री अजीत स्यंघजी आवैगे तो टटेरा सौ कुच करि नारनोल आय डेरां करैं अर नारनोल वा कोटफुतली का वाका न इसां कना वाका दाषील करावै वां अमीर षा कनां नवाब षांन षाणां कना लीषावै जो यहा ताइ रांजा जै स्यंघजी आय पहुतां अर रांजा अजीत स्यंघजी नै ताकीद लिषि है सो उन का आबा कि ढील है अर रांजाजी कै ढील नही सो यां बात लीषि आवै तो पातसाह कै धिरज बंधै जी-नत्र पातसाहजी या फुरमावै है जो दोन्यौ रांजा आपणी आपणी हद मै बैठे है | मीती फागण बदी 13 सं. 1767 दीतवार |||||