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Vakil Report 33

श्री महाराजाधिरांज सलामती

अरजदासती करार मीती फागण बदि 13 दीतवार की लीषी हजुरी भेजी छै ती सौ सारी हकीकती अरज पहुची होयली जी | मीती फागुण बदी 14 सोमवार साहीजादै जीहादार स्याह बहादर पातसाहजी सौ अरज करि जो कसबा इदरी कै पासी नाहर मेरां करोलां नै रोक्या है सो हुकम होय तो नाहर की सीकार षेली आउ तब पातसाहजी रुषसद कीयां सो (-)-लवा लसकर समेती साहीजादैजी कुच करी गया जी | अर लसकर मै यह षबरी है जो कोकलतास षा की जागीर पाणीपथ मै है अर वहा उन के घर हैं सो उहा उन के मीजमानी-षाणै जाहीगे |

श्री महारांजाजी सलामती - मीती फागुण बदी 14 नै पातसाहजी को कुच हुवो सो बुड़ीया कै उरै कोस दोय पेसषानो षड़ो हुवो छौ तीठै दाषील हुवा जी | अर नवाब षान षाना कै नाक कै आजार ज्यादां सो नाक मै राधी पड़ै छै अर जोक तो लगाइ थी पणी फुरसती न हुइ फेर भी ओरु जोक लगांइ है तीह वासतै नवाब षान षांना वा महाबत षाजी का मुकाम हुवा जी | सो भंडारी वा बंदै भी इन कै साथी मुकाम कीया जी |

श्री महारांजाजी सलामती - बीजै स्यंघजी चुरामणी जाट को नवाब षांन षांना कै अधिकार देषी अर डेरै बुलाया अर घोड़ा सीरोपाव उन कों दीयां अर चुरांमणी सौ कही जो तुम नवाब सौ अरज करि हम कों मुथरा (sic!) की फोजदारी दीलावों तब चुरांमणी कही जो फुरमावोलो सो करोलो तब चुरांमणी कीसन स्यंघ नरुका का-मीलांबा वेइ अरज करी तब कही जो तुम हम पासी ले आवो | तब दुसरै दीन चुरांमणी कीसन स्यंघ कों ले गयां तब

बीजै स्यंघजी कीसन स्यंघ नै सीरोपाव दीयां अर साह बलु नै परवानो लीष दीयो जो तुम बनाउड़ सौ मुजायम मती हों म्हे या सौ औठै समझी लेस्यां अर षोहरी (?) रुसतम दील षा साहीजादौ रफील स्याह की जागीर मै थी सो इजारै लीइ रुपया अर आधा बट बीजै स्यंघजी को दीयां अर आधा रुसतम दील आपणै रांषी सो उठा की फोजदारी आधी तो बलु नै हुइ जी अर आधी (------) परी रुसतम दील आपणा आदमी बीदा कीया जी | अर आगरे की गीरद वाइ का परगनां सब चुरांमणी जाट इजारै लीयां अर चुरांमणी जाट वा कीसन स्यंघ कीया षरी है जो मुथरा के आस-पास की गठी ठाहणै कों बीदा हो ही सो सीरोपाव अलाहीदा हुवा छै सो जब पावैला तब अरज लीषौलो जी |

श्री महारांजाजी सलामती - जाट का मामला नवांब षांन षांना की मारफती ऐसा बधी गया है जो क्यौ अरज पहुचाबा मै आवै नही जी |

श्री महारांजाजी सलामती - गरु की लसकर मै या षबरी होय रही है जो नाहणी का रांजा का लोगा सौ लड़ाइ करी नीकसी गया जी | सो यह षबरी बहोत गरम है जी | अर कहै है जो भुटंतर के पहाड़ो मै गयां अर पातसाहजी इस हि त्रफ झुकलाय झुकलाय डेरां करै हैं कोस आठ दस नाहणी का रांजा का पहाड़ रहै है |

श्री महांरांजाजी सलामती - मीती फागण बदी 15 मंगलवार साहीजादौ अजीम सानजी माफीक हुकम पातसाहजी कै नवाब षांन षांना कै डेरै आये थे तब चलती बेर हाथी वा घोड़ा नो वा जोवाहर नीजरी कीयां सो रषाया नही | कही जो हमारे ही है हम तो तुम को देषणै को आये थे अर तीसरै पहैर नवाब दरबार कीयां तब भंडारी वा षानाजाद जाय (-)-रायत कै वासतै र्पया गुजरांन्या सो रषाया जी | मीती फागण सुदी 2 सं॰ 1767 |||||