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Vakil Report 203

अरजदासत पचोली जगजीवन दास की

मी॰ फा॰ ब॰ पकी मि॰ फागु॰ बदि 12 कौ पहोची

श्री श्री श्री


||:|| श्री गोपालजी सहाय छै जी

|| श्री महाराजाधिराज महाराजाजी

श्री मीरजा राजा जै सिघजी

|| सिंधिं श्री महाराजाधिराज महाराजाजी श्री

चरणकमलानु षानांजाद (---) पाय पचोली जगजीवन दास लिषतं तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का समाचार श्री महाराजाजी का तेज परताप कर भला छै | श्री महाराजाजी का सीष समाचार सासता परसाद करावजो जी | श्री महाराजाजी माइत हैं धणी हैं | श्री परमेसुरजी की जायगा हैं | म्हे श्री महाराजाजी का षांनाजाद बंदा हां | श्री पातसाहजी श्री महाराजाजी सुं महरबांन हैं | श्री महाराजाजी सुष पावजो जी पान गंगाजल आरोगबा का घणा जतन फरमावजो जी |

|| श्री महाराजाजी सलामत - दोनुं सरकार का मुतसदी यां नै व रजपुत ठाकुरां नै श्री पातसाहजी की मुलाजमत कराइ चवदा सरोपाव सरकार की तरफ का सरदार लिष दीया त्यां नै व सोला आसामी महाराजा श्री अजीत सिघजी की तरफ सुं लिष दीया था त्यां नै सरोपाव इनायत हुवा तीं का समाचार व मोजदी का जिबह कीयां का व जुलफकार षां का मारां का समाचार आगैं अरजदासत कीया छै स नजर मुबारक गुजरा होसी जी |

श्री महाराजाजी सलामत - परवानां षानाजाद नवाजी का तारीष 11 (?) महरम का लिष्या मी॰ फागण बदि 2 सादर हुवा तसलीमात बजाय लाय सिर चढाय लीया तमाम सरफराजी व षानांजाद नवाजी हुइ जी | आगैं फरमान श्री महाराजाजी नै पहोंच्यो ती मै मीरजा राजा सवाइ को षीताब दाषल थो | वैं की नकल व नवाब अबदुला षांजी व हसन अली षांजी कै नांव षत इनायत हुवा था | सु पहोंच्या हुकम आयो जु आगै फरमान आयो तीं मै मीरजा राजा सवाइ को षीताब दाषल थो अर अबैं फरमान कलान सिघ जदूं साथ भेजो लिष्यो ती मैं मीरजा राजगी को ही षीताब दाषल छै | सु थे नवाब हसन अली षांजी सुं अरज कर दसतुर साबक मीरजा राजा सवाइ को षीताब बहाल कराजो सु माफक हुकम कै तलास कर मीरजा राजा सवाइ को षीताब लेसुं जी |

श्री महाराजाजी सलामत - हुकम आयो जु महाराजा श्री अजीत सिघजी की तरफ सूं अरजदासत व नजर श्री पातसाहजी हजुर गुलाल चंद पास भेजो छै | सु वै गुजरानै तब सरकार की तरफ सुं भी गुजरानजो सु महाराजा श्री अजीत सिघजी की तरफ सुं गुजरानैला तब सरकार की तरफ सुं भी गुजरानसुं जी | नवाब हसन अली षाजी सुं जाहर कर चुका जु दोनु साहबा की अरजदासत व नजर श्री पातसाहजी नै व नवाब नै षत आया छै |

|| श्री महाराजाजी सलामत - हुकम आयो जु महाराजकंवार चीमां साहबाजी का मनसब असल व इजाफा की तोजीह दूरसत कराजो अर हजुर सु नांव मुकरर भेजांला सु माफक हुकम कै तोजीह दूरसत कराउ हुं अर हजुर सूं नांव मुकरर होसी तीं माफक लेसुं जी |

|| श्री महाराजाजी सलामत - हुकम आयो जु नुसरत यार षां को नायब अठै नीगाह-दासत करै छै चाहै छै जु सरकार का महालां मै षललल (sic! i.e. षलल) करै सु वैं का तालका का परगनां पायबाकी का स्याम सिघ का इतफाक सुं सरकार मै मुसकस कर भेजजो सु पातसाही मुतसदी यां सुं व नसरत यार षां का मुतसदी या सु स्याम सिघजी का इतफाक सुं रदबदल करां छां जु चुकसी सु अरजदासत करसूं जी |

|| श्री महाराजाजी सलामत - मी॰ फागण बदि 2 स्याम सिघजी अठै आया नवाब हसन अली षांजी सुं मीलाया | नवाब बहोत महरबानी की अर रूषसत कीयां तीं का समाचार आगैं अरजदासत कीया छै सु नजर मूबारक गुजरा होसी जी |

श्री महाराजाजी सलामत - मी॰ फागण बदि 4 स्याम सिघजी व षानांजाद व कन्हीराम उदावत व गुलाल चंद नवाब हसन अली षांजी कै डेरै गया | नवाब बहोत दिलासा की अर भांत भां (sic!) की सोगंद षाय कह्यो जु मै चाहता हुं जु दोनु राजों के मतालब अपणी मारफत सरंजाम करैं अर यह जस लें सु स्याम सिघजी व षानांजाद दोय बषत नवाब हसन अली षांजी कै डेरै जावां छां जु रदबदल होसी सु पाछां सुं अरजदासत करसूं जी |

|| श्री महाराजाजी सलामत - नुसरत यार षां नै पांच हजार रुपया तो आगैं दीयां तीं की अरजदासत आगैं हजुर भेजी छै | सु नजर मुबारक गुजरी होसी जी | अबैं नुसरत यार षां कहै छै जु पांच हजार रुपया तो थे आगैं दीया अर पंदरा हजार रूपया ओर षाह-म-षाह दो अबार मनै बडी गरज छै अबार म्हारी गरज सार सो तो बडो अहसान छै | सांभर का तथा पायबाकी का हासल मै भर लीजो | सु बीनां हुकम तो इं मुकदमां मै दलेरी न कर सकुं जो हुककम (sic!) होय तो दीजे अबार का दीयां को अहसान मानै छै जी |

|| श्री महाराजाजी सलामत - स्याम सिघजी व कन्हीराम-जी-या ठहराइ छै जु भंडारी रुघनाथ नै बुलावां जुं वो अर म्हे मील दोनु सरकार का मतालबां की रदबदल कर सरंजाम करां सु यां महाराजा श्री अजीत सिघजी नै षत लिष्या छै जु भंडारी रुघनाथ नै भेज दीजो सु श्री महाराजाजी नै मालूम होय जी |

|| श्री महाराजाजी सलामत - फागण बदि 3 पातसाहजी बीदराबाद का महालां सूं सूवार होय साहजहानांबाद का किला मै दाषल हुवा अर हुकम हुवो जु मोजंदी का व जुलफकार षां का मारां की नोबत बजावो अर मोजदी को सिर काट बांस कै बांध जु दो हाथी पर राषो अर ऐक हाथी पर धड़ राषौ अर जुलफकार षां की पेसाब की जायगा काट वैं का ही माढा मै दी अर जीं हाथी पर मोजंदी को धड़ यो वै ही हाथी की पीठ पर होदा तलैं उलटो लटकायो | अबैं मोजंदी की व जुलफकार षां की लोथ किला का दरवाजा आगैं नाषी छै | मोजंदी को माथो काटो थो सु वैं ही की छाती पर रोषो छै (sic! i.e. राषो छै) | सु अब तक पड़ा छै सु संसार देष देष जाय छै जी |

|| श्री महाराजाजी सलामत - आसफ दोल षीदराबाद का महलां पास डेरा षड़ा कर रह्यो थो सु उठा सुं सहर मै ओयो (sic! i.e. आयो) | फतेपूरी की मसीत मै उतरो अर जुलफकार षां का मारां की बहोत गम कीयो | सु नाज न षायो | अबैं हुकम हुवो जु आसफ दोला नै कैद करो अर घर जबत करो | सु आसफ दोला नै कैद कीयो अर हवेली व मताह जबत हुइ जी |

मी॰ फागण बदि 5 सबत 1769 |||||