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Vakil Report 188


|| श्री महाराजाधिराज महाराजा

जी श्री मीरजा राजा जै सिघजी

||:|| सिंधिं श्री महाराजाधिराज महाराजाजी श्री चरण कमलानु षानांजाद षाक पाय पचोली जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का समाचार श्री महाराजाजी का तेज प्रताप कर भला छै | श्री महाराजाजी का सीष समाचार सासता परसाद करावजो जी | श्री महाराजाजी माइत हैं धणी हैं | श्री परमेसुरजी की जायगा हैं | म्हे श्री महाराजाजी का षांनांजाद बंदा हां | श्री पातसाहजी श्री महाराजाजी सुं महरबान हैं | श्री महाराजाजी सुष पावजो जी | पान गंगाजल आरोगबा का घणा जतन फूरमावजो जी |

| श्री महाराजाजी सलामत - सारा समाचार दरबार का आगैं अरजदासत कीया छै सु नजर मुबारक गुजर्या होसी जी |

| श्री महाराजाजी सलामत - षानांजाद मी॰ पोस बदि 9 राजा सभा चंद पास गयो | राजा कही जु जमयत कहां तब षाणांजाद कही जू जमय रुषसत हुइ दिन पांच सात मै हजूर आसी फेर षानांजाद व गुलाल चंद व जोसी सिंभु राम नवाब अमीरल उमरावजी पास गया नवाब सलाम करतां ही फरमाइ जु तुम नै श्री महाराजाजी का परवानां हिंदवी जमयत तयार करणे का तुम कुं आया था सु तो तुम नै दिषाया पण तुम श्री महाराजाजी कुं अरजदासत करो जु जमयत रुषसत करी होय तो बहतर नहीं तो अब सीताब रुषसत करैं इस वकत मै जमयत आय पहोचै तो बडा मुजरा है श्री पातसाहजी हजुर हमारा बोल-बाला होय सु श्री महाराजाजी सलामत - यां कै भी जमयत चलां का समाचार साह बेग (sic!) लिष्या पण यां कै जमयत की इनतजारी घणी छै जमयत आयां षातर जमां होसी सु नवाब व राजा सीवाय जमयत मंगाबा कै ओर बात न करै छै | मुथराजी पहोचतां तक जमयत आय पहोचै तो यां की भांत भांत षातर जमां होय जी तीं सूं उमेदवार छूं जू जमयत चली त्या नै घणी ताकीद सुं हुकम जाय जुं सीताब हजुर आय पहोचै जमयत आयां पाछैं यां हर भांत षातर जमां होसी जी यां कै तो लगन जमयत की लग रही छै तीं सुं सीताब जमयत आवै जी |

| श्री महाराजाजी सलामत - महाराजा श्री अजीत सिघजी का मोहमसाजी का रूपया राजा का व ओर मुतसदीयां का दाम दाम पहोच चुका अर सरकार को कहीं नै दाम ऐक न पहोच्यो अर हुकम इं भांत सादर हुवो जु सरकार का मताल सरंजाम हुवां | रूपया दीजो सु सरकार का मतालबां को तो राजा नवाब पास सूं कोल दीवायो अर अबैं रुपया मांगै अर नवाब जमयत आयां दसषत करसी सो अब तक तो सहुलीयत सुं आधो काढो छै जी | मी॰ पोस बदि 10 सूकरवार नै राजा कै डेरै गया सु राजा आप कै घर षीलवत मै ले जाय कही जु नवाब पास सुं तूमारी नीसां तो सब कराइ जमयत आवै तब सनदैं लो अर महाराजा अजीत सिघजी का जु देणा कीया था सु तो हम कुं पहोच्या अर तुम बातों ही मै आधा काढते हो सु नवाब का व हमारा तुम कुं ऐतबार होय तो हमारे रुपयो की नीसां करो अर हम सूं काबु देषते हो तो हम सुं कुछ कहो मत हम तुम सूं कुछ मांगतें न हैं जिस मै अपणा फायदा जाणो सु करो सु पातसाही को तो काम तमाम इं सुं अर यो मतलबी सु दरबार की तो या सुरत छै रूपया पहली लीयां बिनां राजा बात सुणै नहीं तीं सुं उमेदवार छूं जु सीताब हुकम आवै जुं रूपया दे राजा की रजामंदी हासल करां अर नवाब जू कोल दीया छै त्यां कै वासतै बजद होवां जी जो जुवाब आबा मै ढील हुइ तो अब तक तो आधो काढो छै पण ढील हुवां मजोरह (?) तो दीसै नही जी अर इसी मालूम होय छै जु इतनां रुपया सीवाय भी भंडारीजी रजामंदी करी छै अर महाराजाजी का षत तो आवै ही छै पण आप ही षत लिष जुवाब मंगावै छै सु अठै तो सारी बात दीयां की छै अर सरकार की तरफ सुं कुछ पोहचो नही सु यां सुं की भांत दबाय कर कहजे जी |

| श्री महाराजाजी सलामत - षानांजाद नै तो हुकम आयो जु बाकी मतालब रह्या हैं सु सरंजाम दें तब सनदां ले रुपया दीजो सु षानांजाद तो चाहै जु बाकी मतालब सरंजाम हुवां सनद करांय पहली सनदां लूं पछैं रुपया दुं अर राजा चाहै जु महाराजा श्री अजीत सिघजी का रुपया पहोच्या अर यां कै टका आया सु यां दाब राषा सु रुपया पहली लूं जमयत आयां काम कर देस्यां सु इं झगड़ा मै षानाजाद ससद रहै जो श्री महाराजाजी की षातर मुबारक मै आवै जु लाष रुपया राजा नै पहली ही दीजे रस राषजे आपणो कर लीजे जमयत भेजी ही छै मतालब पछैं कोल माफक कर देसी तो सीताब हुकम आवै जु रुपया दां रस राषां अर राजा तो बिनांटकां आं-(----) फेर गयो जमयत को मतलब नवाब कै छै इ कै तो टकां की लग रही छै सु श्री महाराजाजी सलामत - अबार तो नवाब नै घणा हीं टका देणा छै राजा नै तो दे चुकजे अर सब मतलब कीयां नवाब नै देस्यां जी |

| श्री महाराजाजी सलामत - हुकम आयो जु जु काम करो सु गुलाल चंद का इतफाक सुं कीजो सु ओर इतफाक ऐक ही छै पण दरबार मै वां टका दीया सु हम गीरी जादा अर म्हे आधो ही काढां छां सु दरबार की बात तो टकां की छै ओर इतफाक ऐक ही छै जी |

मी॰ पोस बदि 11 सबत 1769 |||||

श्री रामजी

||:|| श्रीजी सलामत - अरजदासत षाम चुका था इतरा मै जोड़ी श्री महाराजा अजीत संघजी की आइ तो मै लीषो छै जु जमयत रुषसत करी ती मै सवा सै ठाकुर तो इसा रुषसत कीया छै तां की महाराज आप ताजीम करै सु यां की जमयत की तो षबर आइ चुकी छै अर श्रीजी भी जमयत रुषसत करी ही होसी जो कदाच ढील करी छै तो अब श्रीजी सीताब जमयत रुषसत कीजो जी इसो न होय जु यां की जमयत सीताब आण पोहचे पहली ही आप को (की ?) मनसब लीयो पसा पहली भरा अर जमयत भी आण पोहचै तो भला नही ती सु जमयत सीताब भेजजो जी |

अर बीजै संघजी का मनसब के वासते लीषो थो सु थेली मोहर की षानांजाद कनै नही ती सु नवाब नै षत जी भांत षातर मुबारक मै आवे ती भात हजुर सु ही लीष भेजीजै अर थेली चार पाच ओर भेजजै जरुरीयात होसी तो षानांजाद मतलब लीष गुजरानसी जी |||||