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Arzdasht 334

||:|| श्री गौपालजी सहाय छै

|| श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री

|| राजाधराज सवाइ जै सिघजी

||:|| स्वस्ति श्री म्हाराजाधिराज म्हाराज श्री चरण कमलांनु षांनांजाद षाक पाय पां॰ जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजौ जी | अठा का स्माचार श्री म्हाराजाधिराज का तेज प्रताप थे भला छै | श्री महाराजाजी का सीष स्माचार सासता प्रसाद करावजौ जी | श्री महाराजाजी माइत है धणी है | श्री परमेसुरजी की जायगा है | म्हे श्री महाराजाजी का षांनांजाद बंदा हां | श्री पातिसाहजी श्री म्हाराजाजी सुं म्हरवांन है | श्री म्हाराजाजी सुष पावजौ जी | पांन गगाजल (sic!) आरोगण रा जतन फुरमावजौ जी |

| अप्रच काती बदि 1 गुरवार आधी रात उपरांत तीन घड़ी बाजां पछै पातिसाहजी के बेटो हुवौ नोबत बाजी कुतबुल मुलक कुतबुदी की दरगाह गया था सु चार घड़ी रात पाछली रही तब बेटा हुवां की षबर पोहची वे ही घड़ी नवाब सुवार हुवा पांच घड़ी दीन चढतां की लै आया मुलाज्मत की ऐक सौ मोहर नजर की जुमां को दीन थो सारै दीन बाग मै रहा काती बद 3 सन उ जसन पातिसाहजी कीयो बास आंम बेठा कुतबुल मुलक लाष रुपया नजर कीया |

| लाष रुपया षांन दोरां नजर कीया कुतबल मुलक नै छह पारचां दो सरपाव दीयो सारा उमरांवां नै षुस-बोइ पांन दीया | काती बदि 4 रववार फेर दीवान आंम मै जसन कर बेठा षांन दोरां नै म्हमद अमी षां नै षांन आलम नै सादात षां नै सरपाव दीया ओरां नै पांन अरगजो दीयो अबार ताइं कुछ हुकम हुयो न्है देषजे कीतनां दीन जसन करै |

| महाराजा सलांमत - बेटा हुवां की मुबारकबादी की अरजदासत व नजर भेजजौ जी |

| गाजुदी षां नै पांन न दीया सु दीवान आंम मै सु उठ गयो पातिसाह देषो पण फुरमायो कुछ न्ही दुसरै दीन बुलाय सरपाव पांन दीया |

| बाणवे हजार रुपया सका (?) बेलदारां की पाछली तलब का नीकला सु दीवान जग रांम हजुर की हुडी वालां नै दीया दवाब मै दीया |

| लाल सिघ वगेरह की तीत मे तलब मै बरवाड़ो झीलाव (?) उण वारो यै हजुर का हुकम मवाफक लीषाय अरजी तयार की है पण फेर भी हुकम की राह देषुं हुं अब कै हुकम आवै तो अरजी हजुर भी जवाब सु-वा-द कराय मंगाउ दीवांन जग रांम भी या|वा ही कहै है हजुर को हुकम मगायलौ |

| यां दीनां मै जाट की मोरचां की कुछ षबर हजुर सुं आइ न्ही सु षबर पै दर पै इनायत कीया कीजो जी | कुतबल मुलक व षांन दोरां स्माचार पुछौ करै है |

| फोज का वाका सुं अरज हुइ सांम सिघ षंगारोत नै हजुर बुलायो अर हीमत राय माल वा-को नायब लसकर मै आयो |

| दषणी नरबदा पार उतरौ ती पर म्हमद अमी षां नै रुषसत करणो ठहरो है फोज को तुमार होय है |

| महमद षां बंगस मेवातीयां की तंबीह नै रुकसत हुवो थो सु ज्मनां पार उतरौ |

| राजा उदोत सिघ बुदेले आप का मुतसदी नै वकील नै बोहत ताकीद सु लीषो है ज हजुर कौ हुकम आयो होय सु पुछ जवाब लिषजो सु षांनाजाद नै पुछै था सु उमेदवार हुं जेसो षातर मै आवै तेसो जवाब इनायत होय जुं वां सुं कहुं अर वां का षत कौ जवाब इनायत होय जी |

| महाराजा सलांमत - अब के साल कहत पड़ौ ती सुं दीली का पुरा मै इतनां हासल न हुवो पड़ाव (पड़ाय ?) का तीन हजार पारसाल आया था सु अब कै दमड़ी आवण की न्ही घास की गीरानी सुं गाडा आवै न्ही ऐक हजार की जीरायत होय थी सु मुतलक न हुइ बाग मै आंम अमली होय था सु मुतलक न्ही वे ही चार रकम की अमदनी थी सु न हुइ ती सुं इ साल मै इजारो न (---)

| महाराजा सलामत - परवांनां मे हुकम आयो आठ लाष दांम फागवी मे पायबाकी है सु सरकार मे लीजो सु श्रीजी सलांमत - फागवी मे पायबाकी न्ही आठ लाष दांम लाला सुलतान लिघजी का नवीसंदां सुं मील बहाल रषाया है तीन सदी जात तो सुलतान सिघजी को बहाल हे सुवार चार सदी पायी न सब का गया सु वां का भी गया सु वां का इजाफा की फरद महाबत षांजी ने दी हे जो साहजादोजी दोय सदी जात इजाफे दे हे अर सुवार बहाल कर दे हे तो याददासत अरज मुकरर कराय आठ लाष दांम फागवी का वां के ही बहाल है सु सनद कराय भेजसां बाकी ओर ठोड़ लेसां ती सुं फागवी का दांम नवीसंदां सुं मील वा के नाय (नाव ?) दफतर मे ही लीषाय रषाया है जी | पायबाकी आवण दी न्ही |

| महाराजा अजीत सिघजी के सब बीरादरी की तलब व मसरुत की तलब सोरठ की पायबाकी दी अज्मेर मे पायबाकी न्ही पचीस तीस लाष दांम अज्मेर मे पासी सोरठ मे तीस बरस सुं पायबाकी पड़ी थी सु सब यां की बीरादरी की तलब मै भर देसी जी |

| महाराजा सलामत - कंतत की फोजदारी की मसरुत चोदा लाष दांम दे था तरहार वगेरह छह महाल उपर असी लाष दांम था जी का ऐक महाल की रसद का चोदा लाष दांम दे था अर कंतत अहमदाबाद गुहारा सुदर (?) सुणजे हे ती सु तरहार की फोजदारी की महाबत षां सु कुदरतुलाजी सु रदबदल करजे थी कुदरतुलाजी शाहजादाजी सुं कही साहजादेजी कही तरहार की सब सरकार म्हां की जागीर हे अब ताइं असी लाष दाम मसरुत तरहार की फोजदारी उपर था अब म्हे चालीस लाष दांम ही मसरुत दे ओर भेजो है सो भी चालीस लाष दांम तरहार मे तनषाह न्ही ओर ठोड़ हे राजा जी कुं उहां कुछ न फा (?) न्ही कंतत भी मत लौ ती सुं कंतत को साहो करायो न्ही भंडारीजी दासजी कही साहजादो मने करे हे तो छोड दौ |

| बीरादरी की व मसरुत की पाददासतां तयार होय है अरज मुकरर हुइ न्है अब होसी जी |

| दवाब का नकीब पयादा गुरे जीलकाद सुं सरबराही के वासते पाछे लगा हे षांनाजाद बीनां जागीर सरबराह करे न्हे देषजे भंडारीजी काइं करे अर जागीर की अरजी भी तयार कराइ है जो चुकसी सु अरजदासत करसुं पण दवाब सरबराह हुइ दोय चार दीन्मे (sic!) दांणो पड़सी मुसरफ तहवीलदार दवाब दरबार षरच का मुकरर होय तो आप का ओहदा सुं षबरदार है जी |

| महाराजा सलामत - अब तो इ तो जो रावरी सुं सब दरबार का मुतसदीयां सुं पेस ले गया अब दासजी तो परवांनां जागीरा का ले हजुर आवसी अर श्रीजी कुच फुरमावेला सु पांच से कोस कै पले लसकर सुं जुदा बीराजेला अर मुतसदी सरकार सुं सदा पाव आया हे सो चाहे हे रोज षांनाजाद सुं ताकीद करे हे ज म्हे मीरजा राजा जै सिघजी का अमल सुं ले आज ताइं पाय आयां हां सु अब दौ न्ही दो तो म्हे भी दाव पाय (पाव ?) बीगाड़ करसां थां-ने तसदीयो देसां सरकार मै मुतालबा तसरफ तकसीम वगेरह फरद अलाहदी हजुर भेजी है वे (ये ?) लोग सो देढ सो फरस सुं पाय (पाव ?) आया होय सु उमेदवार रहै ही रहै पायो ही चाहै ती सुं उमेदवार हुं सदा पाय आया है सु पाये (पावे ?) जाय अर चोबदार दरबार के पावे आये हे सु पावै जी | बीनां चोबदार षीदमतगार वगेरह का दीयां बीनां दरबार मे तथा उमरावां के जाण पाइ जै न्ही अर जद सब नै दीजै तब छाती षुला दीवानी कचहड़ी मे बकसयां के दरबार मे सब ठोड़ जा-जे सब की षबरदारी रह सकै अर चोबदारां ने तथा षीदमतगार ढलेत कहार ने जाबरदार कलमदान बरदार ठोड़ ठोड़ कां ने दीजे तो सब इजत सुं आदर सुं जवाब सुवाल करण दै अर न दीजे तो दरवाजा मे जाण न दे अर सदा पातिसाही दरबार मे गुसलषांनां की दोढी चार घड़ी पातिसाहजी दरबार कर बेठे जद हाजर रहो चाहजे तो भली बुरी दस षबरां सुणजे जी | को जतन कर सकजै अर षबर ही न पाजे तो काइं जतन कर सकजे अर रोज हाजर रहजे तो कही स्मे षबर हाथ लागे ही लागे अर दीवानी कचहड़ी मे बकसीयां की कचहड़ी मे रोज हाजर रहजे तो मनसब की जागीर की षबर रहै अर वकालत तो या ही कहावे ज वकील सब दरबार मे ठोड़ ठोड़ हाजर रहे दरबार की कचहड़ीयां की दम-ब-दम की षबर राषै ती सुं चोबदारां का व नवीसंदां का दीयां बीगर बणे न्ही षाह ना षाह दीयो ही चाहजे ती सुं उमेदवार हुं चोबदारां को इनांम मंजुर मंजुर होय अर तनषाह आवे (आये ?) जी |

| षांनाजाद आप को ज्मां षरच भेजो हे सु नजर मुबारक गुजरसी दीवांनयां ने हुकम होय ज्मां षरच की बाकी भेजे तो बोहरां का करज सु फारग हो उ रोजगार को ज्मां षरच तो दीवान भीष्यारी दासजी के हवाले कीयो अर मुफसल ज्मां षरच हजुर भेजौ हे जी |

महाराजा सलामत - षांनांजाद ऐक भाइ को बेटो गोद लीयो है ती को ब्याह फागुण मै हे सु आगे बेटयां का ब्याहां ने तो पचास पचास हजार रुपया श्रीजी का प्रताप सुं लगाया अब बेटा को ब्याह आय लागो है अर षांनाजाद तो यां दीनां मे कुत सुं आज ज है (?) जो हुडी रोजगार की आइ सु ब्याज बटा मे ही बोहरा ले गया ती सुं उमेदवार हुं ज्मां षरच का रुपया बोहरां का पाउ तो वां ने दे फेर वां कने करज ले ब्याह कर दुं जी नांव श्रीजी को है आगे तो राजा उदोत सिघजी मदत की थी अब के तो केवल श्रीजी की ही वकालत है श्रीजी षबर लेसी तो सरम रहसी जी |

| महाराजा सलामत - बोहरी (षोहरी ?) कै वासते हुकम आयो ज साहजादा का मुतसदीयां ने स्मझाय कहजो ज प्रोहत स्यांम राम की ही जामनी कबुल करै सु रदबदल करी बोहत स्मझाया पण मांने न्ही बोहत रदबदल पाछे चोथाइ की जामनी तो स्याम राम की कबुल करी अर तीन बाटा का ओर जामन मागे हे अब जो परगनो बोहरी (?) लेणो होय तो सांम राम की चोथा बंत की जामनी भेजजो अर ओर सराफां की जामनी भेजजो जी | अर मुतसदीयां का षरच की हुंडी भेजजो जी | अर तीन बरस की जामनी मांगे था सु श्रीजी का हुकम मवाफक ऐक बरस की ही साहुकारां की जामनी ठहराइ अर दोय बरस को श्रीजी का हुकम मवाफक षांनाजाद मुचलको लिष देसी काजी की मोहर सुं जु दसराहा के दसराहे जामनी सराफ की दां अब जी जी भांत हुकम आया सु सब वां (यां ?) पास कबुल कराया अब अषतयार श्रीजी को है जी |

| मालपुरा को इजारो लीयो पटो हजुर भेजो है जी यो भी श्रीजी का प्रताप सुं बणो है जी |

| सं॰ 1768 मंगसर सुद 7 |||||