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Arzdasht 303

|| श्री महाराजाजी श्री जै संघजी

||:|| सिंधिं श्री महाराजधिराज महाराजाजी श्री चरन कमलांनु षानाजाद षाक पाय पंचोली जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का स्माचार श्री महाराजाजी का तेज परताप कर भला है | श्री महाराजाजी का सीष स्माचार सासता परसाद करावजो जी | श्री महाराजाजी माइत है धणी है | श्री परमेसुरजी री जायगां है | म्हे श्री म्हाराजाजी रा षानाजाद बंदा हां जी | श्री पातिस्याहजी श्री म्हाराजाजी सै महरबान है | श्री महाराजाजी सुष पावजो जी | पान गंगाजल आरोगण रा घणा जतन फरमावजो जी |

| श्री महाराजाजी सलांमत - षानाजाद नवाजी को परवानो मीती पोस सुदि 4 को लिषो दीवान भीषारी दासजी का परवाना की साथ इनायत हुवो सु माथै चढाय लीयो | षानैजाद नवाजी व सरफराजी हुइ जी |

| श्री महाराजाजी सलांमत - मीती म्हा बदि 1 पातस्याहजी को कुच हुवो सु मोजै साढोरै डेरा हुवा अब अठा सै जठी नै सरीफ फरमायो चाहसी जठी की मंजलां मुकरर होसी अब ताइं ना-मुसकस है जी |

| श्री महाराजाजी सलांमत - नाहन का राजा का दीवान नै नवाब षान षाना बे-इजत कीयो तोक-हथकड़ी व बेड़ी घाल कैद कियो अबै इ मुचलका सांच लिष दीयो है अर नाहन का राजा उपर भी चोकी बैठी है |

| श्री महाराजाजी सलांमत - सत्रसाल दुंगाह नै देस की सीष हुइं पातिस्याहजी व षान षाना सीरपाव दीया जी |

| श्री महाराजाजी सलांमत - नवाब षान षाना षानाजाद नै फरमायो महाराज कहां तक आये षानाजाद अरज करी जु नवीस राय सै चालां का परवाना आय्या है फुरमायो आबा की देर करै है ये ती ही इस की षुमार षैचैगे सु श्री महाराज सलांमत - महाराज श्री अजीत सिघजी पधारै है तो भलां ही है अर जो वां का आबा मै ढील होय तो श्री महाराजाजी तो बेगा पधारजो जी | पधारबा की घणी ताकीद फरमावजो जी |

| श्री महाराजाजी सलांमत - भंडारी षीवसी मीती म्हा बदि 2 लसकर मै दाषल हुवो है जी |

| श्री महाराजाजी सलांमत - षानाजाद नै आप की परेसानी की हकीकत बार बार अरज लिषणी बे-अदबी है पण सारी पातस्याही का मुतसदी व वकील य्या क हजुरी सरकार का वकील रायजादो अमर चंच व केसोराय व मेघ राज उमरावं भांत सदा रहा अर थे इ हाल जु डेरां कीय्या भांत जा-ब-जा भाट रहा रोज षरच को कसालो इ सीवाय चोबदार सदा पाय आय्या जानै कु ही न पोहचै सु अऐ भरा दरबार मै जी भात षात्र मै आवै ती भात बोलै जु थे सरकार सै पावो हो अर म्हा नै न दो हो सु भांत भात का तसदीय्या पण षानाजाद तो इ भात भी षीदमत करबा मै आप कीस आदत ही जाणै है जु श्री महाराजाजी इ सु रहै य्या सारी बात है सु आप का दीना की जबुनी है ती सु अबै श्री महाराजाजी का फजल सै उमैदवार हु जु षरची इनायत होय जु इ परेसानी सु छुटू अर यां आगला वकीला का मरातब नै पोहोचु अर जो कु ही (?) तकसीरवार हुं तो हजुर बुलाय तंबीह करजे पण महाराज सलांमत - इ भात वै दरबार को वकील कदे रहो न है जी |

| श्री महाराजाजी सलांमत - नाहन का राजा नै सत्रसाल डुंगह की बांह सु बुलायो थो सु सत्रसाल नै तो देस की सीष दीयै का ऐक मंजल चालां पाछै नाहन का राजा नै महाबत षांजी नवाब षान षानाजी कै दीवानषानै लाय्या नवाब पुछो गुरू कठै है नाहन कै राजा कहो जो रावरी सु म्हारी सरहद मै होय गयो तद नवाब तो अंदर गया पाछां सु म्हाबत षांजी भी नवाब कनै गय्या अर इसारत करी सु नाहन का राजा का ही थार षुलाय लीया अर नवाब की डोढी आगै ही रावटी मै केद (कैद ?) कीयो है रावटी कै अंदर बारै चोकी बेठी है नाहन कै राजा कहो हु-तो नवाब की बाह सै आयो हु अर पातस्याही बंदो हु जो म्हारै कनै होतो तो हु कुराष तो नवाब कहो बे-हीसाब कहता है कै (---) गुरू कु पैदा करै कै था (--) दीवान को हाल कीयो है ती ही भात था रो भी हाल होसी नाहन का राजा की साथ ऐक जोगी है सु कह है हु गुरू नै पैदा कर देसु पछै न जाणजे डरता कह है य्या सांच कह है जी |||||