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Vakil Report 88
|| श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री जै सिघजी
||:|| स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री चरण कमलानु षांनाजाद षाक पाय
पां॰ जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजौ जी | अठा का स्माचार श्री महाराजाजी
रा तेज प्रताप कर भला छै | श्री महाराजाजी रा सीष स्माचार सासता प्रसाद करावजौ
जी | श्री महाराजा माइत है धणी है | श्री परमेसुर जी की जायगा है | म्हे श्री
महाराजाजी रा षांनाजाद बंदा हां | श्री पातिसाहजी श्री महाराजाजी थे महरवांन
है | श्री महाराजा सुष पावजौ जी | पान गंगाजल आरोगण रा जतन फुरमावजौ जी |
| अप्रच श्री महाराजाजी रौ परवांनो षांनाजाद नवाजी रो आयां घणां दीन हुवा
सु बंद नवाजी रा परवांनां सासता इनायत फुरमावजौ जी |
| महाराजा सलामत - देवती सां चारी का रुपयां को कोल हंगामो कर रहा है बुलाकी
चंद नै दुर कराये है नुसरत यार षां कै हवालै करायो चाहै है ती सुं यां का रुपयां
की एसी सबील होय ज परगना मे कोइ षलल न करै | साहजहानांबाद का वाका सुं अरज पोहची
ज बाग व रमनो काटै है सीकारां षेले है सो बजनस फरद महाबत षांजी पास पातिसाहजी
भेज दी सु महाबत षांजी बजनस फरद भंडारीजी नै दीवानजी नै पढाइ नकल वै फरद की ले
हजुर भेजी है सु नजर गुजरसी | नवाब कहै था जवांब तां सु हजरत बुरो मांनै है
दुष पावै है अब (---) गयो हे जो इसा मै श्रीजी डाबर की तरफ आवै तो बडो मुजरो
होय तब भंडारीजी कही मो ने रुकसत कीजे तो हुं ले आउं तब नवाब कहो म्हारो तो मोहन
है ज हुं पातिसाहजी सुं या अरज करुं अर इ अरज कराबा मे तो या जाहर होय जयै भी
उठ गया चाहै है अर देढ दोय महीनां हुवा जहानाबाद मे बेठ रहा भांत भांत की तअदी
करे हे सु सु क्या मसल्हत है बणी बणाइ बात कुं बीगाड़ै है अब ताकीद लिषौ ज डाबर
आये अर जो जो मतलब लिषैगे सु सब सरंजांम पावेगा | भंडारीजी घणी ही बातां कही
गुजरात को सुबो दीजे (---)- प्यारै के घाट की षीदमत दीजे ओर के इमन की तरंगां
(?) कही पण बे-दीमाग होय घर मे नवाब उठ गया अब भंडारीजी कहे हे नवाब तो न मांनी
साहजादा अजीमजी सुं भी कह देषां | श्रीजी सलांमत - आगे तो दस बार साहजादाजी
सुं कह चुका है जवाब पाय चुका है अब देषजे काइं हुकम करै पण यां बातां सुं
रस तुट तो जाय है ती सुं श्रीजी की षातर मुबारक मै आवे तो म्हाराजा अजीत सिघजी
ने स्मझाय कहजौ चाकरी करणी होय पातिसाहजी सुं रस राषणो होय देस्मे (sic!) फेर
षलल करणो न्होय राजा राजप्रजा चेन चाहे हे तो ये बातां अब छोड दे दील लगाय चाकरी
करै मुजरो कर दीषाये गुरु ने पकड़ ल्यावै सीर ले आये (आवे ?) पछे जो जो बातां
अरज करे सु सब मंजुर होय अर दीली मे बेठा भांत भांत की फुरमाय स करि तो अषतयार
है पहली पातिसाहजी की हजुर षांना षांनां देरी नो थो जो पातिसाहजी ओर तरह को
भी कही के बाब कहता तो वो स्माल्ह ले तो अब तो छोकरां की मजलस रही हे सब लड़का
लड़का ही है पातिसाहजी की बात रमे अये हे सु ही कर बेठे हे येसा (वेसा ?) स्मया
मे तो चाकरी सुं बोहत षबरदार रहसी वो ही पेस पड़सी ती सुं श्रीजी स्मझाय दीली
सुं चकराय डाबर सीताब पधारजो जी | अर कुरछेत्र पास आयो तब मतलबां कीया जब (-)
अरज कीजे तो सब मंजुर होय जी |
श्रीजी सलांमत - अ-(-)-र ताइं सब बात रस-मे हे अर कुच कर डाबर पधारा तब सब
मतलब भी होसी पातिसाहजी को दील साफ होसी इजाफा लेसां जागीरां लेसां जो जो चाहसां
सु सब होसी षलक जादा होसी जी |
| गाजी षां के चालीस लाष रुपया तो नीकल चुका कीरोड़ देढ कीरोड़ नकद-जीनस मताह
जबत होसी |
| श्रीजी दीली सुं कुच करै तो सरहंद की फोजदारी को तलास करां दीली व लाहोर
बीच सब मुलक श्रीजी कै ओहदै होय जी |
| पातिसाह की षबर है जहानाबाद ने कुच करै कुच की ताकीद है |
| हुकम हुवो गाजी षां की कोइ अरज करसी वे (ये ?) को भी यो ही हाल करसां अध
सेर बीचै जी मे चार पइसा भर लुण वो रोज कर दीयो जी |
| श्रीजी सलांमत - नारनोल की व गाजी का थांणां की व जेतपुरा की तो पहली चुकी
सु अरजदासत करी है अब लालसोट को चुकावो सु गजसिघ व सीधी मनोहरदास की अरजदासत
सुं मालुम होसी जी | मामला माली मे अगरच षांनाजाद को कांम न है पण हजुर सुं परवांनो
आयो नेनसुषजी लिषो अठे दीवान भी ब्यारीदासजी ताकीद करी ती सुं ठोड़ ठोड़ फीर
चुकायां हां पछै हजुर पर राषां हां हजुर मे जो कांम पसंद होय ती की तो जांमनी
देण को हुकम आवे जी |
| श्रीजी सलांमत - राजा मान सिघजी राजा म्हा सिघजी मीरजाराजाजी राजा रांम
सिघजी म्हाराजा बीसन सिघजी का राज मै दरबार मे नवीसंदां को चोबदारां को षरच
सदा होय आयो है अर श्री महाराजाजी का अमल मै आलमगीर छतां दरबार मे षरच हुवौ
है |
अब लोगां ने न दीजे हे इ मै ठोड़ ठोड़ षांनाजादा की बदनामी है | श्रीजी ही
षातर मुबारक मे ल्यावे जो लोग ठोड़ ठीकाणां का देढ सै बरस सुं पाय आया है दस
राजां का अमल मे पायो दस वकीला दीयो श्रीजी का सरकार सुं षांनाजाद सदा दे आयो
होय अर अब न देतो षांनाजाद नेकी भांत छोडे कुं कर दरबारां मे आवण जाण दै कांम
कुं कर होय ती सुं उमेदवार हुं सदा पाय आया होय सु दफतर देष हुकम होय ज सदा
दीयो करुं तनषाह कही ठोड़ होय ज पयादां की चीठी करुं सु दै उजरन करै श्रीजी
ने मालुम है वकील लोग तो पहली चोबदार षीदमतगार ढलेत वगेरह स्व-लोगां ने रोज
दर-माहा इनाम तो हारीं (?) देत ब इजत सुं उमरावां कने आवण जाणे दै ऐक म्हाबत
षां कै ही आयां हां सु काइं षरच लागैह सु दीवानजी की ज्मा षरच सुं मालुम होतो
होसी सु वकील ने तो सब मुतसदीयां के जाणो पड़े हे ती सु उमेदवार हुं चोबदारां
को षरच मंजुर होय अर इनायत होय अर नवीसंदा सदा पाये हे सु पावै |
| सां॰ 1768 भादवा बदि 11 भोमवार |||||