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|| श्री रांमजी
श्री महाराजाधिराज सलामति - गुरू का फीसाद का बड़ा मौसर आय बाज षाया है | अर पातसाहजी गुरू के उपर जाय है | जै इस वकत मौ महाराजा अजीत स्यंघजी वा आप का पधारना होय तौ बड़ी सलाह है जी | जै षात्र मुबारक मै पसंद आवै तौ दौलत स्यंघ कौं प्रवांनौ ताकीदि को इनायत होय जो राजा अजीत स्यंघजी कौं सिताब लै आंवै जी | अर भंडारी षीवसीजी कहै है जो मै जी महाराजाजी कौं बहौत ताकीदि लिषि है |||||
|| आगैं अरजदासति करार मिती चैत सुदि 12 की भेजि है ति सौं सगली हकीकति अरज पहुंची होयगी जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - पातसाहजी लाहौर पहुंचने की बहौत ताकीदि है जी | मिती चैत सुदि 14 ब्रिसपतिवार पेसषांना पहांर की तलहैटी दरा कों चला है जी | सो या राहा सिरहंद जाय निकसैगी जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - फुरमांन तयार हुवा सो मारफति नवाब महाबति षांजी चले हैं जी | अर षत महाबति षांजी अपना बंदे के हवाले कीया है | सो हजुरि भेजा है सो पहुंचा को जुवाब इनायति होय जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - आगे सैद सुजायत षां के तांइ षत नवाब महाबति षांजी का लिषाय हजुरि भेजा था तिस की नकल भेजी थी | तिं सो सारी हकीकति अरज पहुंची होयगी जी | सो षत सुजायति षां कों पहुंचाया होयगा | फेरि बंदे नवाब महाबति षांजी सों रदबदल करी जो षत नवाब का सुजायत षां कौं भेजा है सो इस षत सौं कांम न होयगा | सुजायत षां सषती बहौत पकरी है पातसाहजी सौं अरज करि हसबल हुकम लिषाय देंह | तब नवाब कहा जो पातसाह सों इन दिनौ अरज करनी मुनासिब नही तब मै अरज करी जो अरजी अपनी मोहर सौं पातसाहजी कों लिषि देता हौं | नवाब पातसाहजी कों गुजरांनै अर जो मुझै फुरमावौ तौ इसलांम षां की मारफति पातसाहजी के दसषत नवाब साहिब के नाव अरजी पर कराय ल्यांउं | तब नवाब महाबत षांजी फुरमाया जो तुम अपनी मौहर सौं अरजी लिषि द्यौ | मै पातसाहजी कों गुजरांनौगा | तब बंदे अपनी मोहर सौं अरजी लिषि दी | सो नवाब नै पातसाहजी की नजरि गुजरांनि पातसाहजी नै दसषत कीऐ जो जफर जंग सुजायत षां कौं लिषै जो जागीर वा जिमीदारी के प्रगने राजा के हौं ति सौं मुजाहिम न होय पेसकस न लें | सो षत नवाब का हजुरि भेजा है सो षत सुजायत षां को पहुंचावैगे अर नकल षत की हजुरि भेजी है ति सौं हकीकति अरज पहुंचैंगी जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - किसन स्यंघ नरूका वा चुड़ामनि जाट कों अमीरल उमराव रुसतम दिल षां की ताबि न कीया था | तब महाबत षांजी अरज करि मौकुफ कराया और सिरोपाव दिलाऐ अर दाषिल चौकी अपनी के कराऐ | अर नाहनि के राजा कों हुकम हुवा जो दिली लै जाव सलेमगढ मौ बंदीषांने राषौ |
मिती चैत सुदी 15 संवत 1768 |||||