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Vakil Report 26

श्री रांमजी

श्री महारांजाधिराज सलामती

अरजदासती करांर मीती माह सुदी 3 बार बुधवार की लीषी हजुरी भेजी छै ती सौ सारी हकीकती अरज पहुची होयली जी |

श्री महारांजाधिराज सलामती - आगै तो धाय-भाइ रुपरांम कै साथि बीजै स्यंघजी को महैल सोलंषणीजी हीडोणी गइ थी अर अबै राठोड़ी रतलाम-वाली की बेटी ओरु भी हीडोणी को चलाइ जी | अर रुघनाथ स्यंघ चत्रभुजवत वागै॰ लार दीया जो इ नै भी ले जावों तब राणी कही जो हु हीडोणी कोइ जाउ नही न रतलाम जाउ आबैरी जाउगी महारांजाजी मुनै षाबा नै देहलां | अर तीन दीन ताइ भुषी रही अर बहोत हठ कीया सो जाणी थे तो यो है जो वै रजपुत हीडोणी ले जाइलां अर जै कदाची आबैरी आवै तो श्रीजी म्हरवानगी फुरमावैला जी |

श्री महांरांजाजी सलामती - महीनो सवा हुवो सो म्हे राती दीन लागो रहै घड़ी येक उघाड़ करै नही सो उट बैल वा घोड़ा वा आदमी बहोत मुवा सौ अरज पहुचावां मै आवै नही जी अर नाज की भी रसत पहुचै नही सो जुदी उ-र-(-) सौ नीरष की अरज पहुचैली जी |

श्री महांरांजाजी सलामती - गरु की षबरी लसकर मै यह है जो नाहणी का रांजा की हद सौ तो नीकसी अर नाहणी का रांजा परै और रोजां (sic! i.e. राजों) की हद छै सो उठै गयो | अर नाहणी का रांजा की मा उस रांजा भी बहैण थी सो वां उस रांजा कै गइ अर उस को कहां जो मेरां बेटा को पातसाहजी नौ रोक्यां सो मुवा ही छुटैगां सो मै तुम उपरी मरुगी | तब नाहणी का रांजां का लोगा वा उस राजां का लोगां मीली अर तलास कीयां सो गरु येक षोहले मै पायां | सो दोन्यौ रांजों की फोज सौ उस षोहले मै लड़ाइ होय है पीठी पीछै बरफ का डुगर है | सो भाजी जाबा नै जायगा नही अर पातसाही फोज बरफ कै सबब जाय सकै नही सो दोन्यौं रांजों सौ पातसाहजी की नीपट ताकीद छै | सो कोइ तो कहै है जो पकड़्या वा कोइ कहै हौ जो अबै पकड़ैगा | सो ठीक पड़ैलो सो पाछां थे अरज लिषौलो जी |

श्री महारांजाजी सलामती - आजी इस पातसाही नै रुसतम दील का मामला बहोत तेजी है अर पातसाहजी नीपट म्हेरवान है अर उस का सुभाव श्री महारांजाजी नै मांलुम छै पाच हजार असवारां की फोज सौ सीहनंद की त्रफ (sic!) नै जाय छै सो पण मे-सु-(--) करै सीताब लसकर बारै नीकसौ |

श्री महारांजाजी सलामती - राजां राज स्यंघ रुपनगर-वालै साहीजादां अजीम सानजी का दोय नीसाण - येक तो महारांजा अजीत स्यंघजी कै नाव वा येक श्रीजी कै नाव वा दोय हसबल अमर हकीम सलेम की महोर सौ जी | मालपुरां का गावा मै सौ षंगारवता की गढी ढहाइ देवासरवाड़ का गांवां मौ सो गोड़ा की गढी ढहाय काढी दे हे सो ये करांया छै जी | सो भंडारीजी सरवाड़ का गांवा कै वासतै महारांजा अजीत स्यंघजी नै अरजदासती करी छौ | तब रांज स्यंघजी दोन्यौ नीसाण वा हसबल अमर वा भंडारी जी की अरजदासती की नकल बंदा पासी भेजी जी इ माफीक थे भी महाराजाजी नै लीषी द्यौह सो बंदा की अरजदासती लीषाय वाका मुतसदी ले गया छै सो हकीकती अरज पहुचै जी |

श्री महारांजाजी सलामती - महैमद साब हाजरी जलेबु मुनसबदार पातसाही की जागीर प्रगना मोजावादी मै दांम येक लाष सात हजार पावै छै सो इन कै वासतै आगै भी बंदै फुरमाये नवाब षानषाना वां महांबत षांजी कौ अरजदासती दोय च्यारी आगै करी छी सो जवाब इनायत न हुवो | अबै नवाब षांनषाना वा महाबत षां बंदा सौं फुरमावै है जो जागीर अबु महैमद कीलादार की इजारै लीइ छै ती माफीक इन के पइसौ की नीसा करों अर जै इन की जागीर इन का मुतसद्या नै सो पीछै तो रांजीनामा मगावो ये पातसाही षास जलेब मै चाकर है अर बार बार अरज पहुचावै है |

श्री महाराजाजी सलामती - मुतसदि हजुरि कानै हुकम होय जो मुतसदी मजकुर कांनै जागीर मै अमल दीयो होय तो वाको रांजीनांमो लीषाय बंदां कनै भेजैज्यौ नवाबां की नीजरी गुजरांनां जी | अर जै सरर (?) मै लीइ होय तो पइसा यनायत होय जी | इन पैसो कौ वासतै बंदा सौ वा पचोली जगजीवन दास नै नीपट कसायलो छै जी अर साग होयला जी | नवाब षां षानषांना (sic!) पचोली जगजीवन दास नै फुरमाइ जो मै तुम को आगै फुरमाया थां सो तुम्हांरै क्या जवाब आयां | तब जगजीवन दास अरज करी जो मेरै तो कुछ जांब आया नही | तब फुरमाया जो तुम दोन्यौ मीली सीताब जवाब मगावो सो अरज लीषी छै जी | सो जवाब सीताब इनायत होय जी |

श्री महारांजाजी सलामती - नवाब षां जिहां बहादर मीती माह सुदी 6 नै बंगाला की सुबादारी हुइ जी | सो जी ही दीन कुच करी गया जी अर बंदा सौ फुरमावै थे जो रांजाजी का इन दीनो मै आवणा होतां तो हमारा मीलणा होतां सो हमारी दुवां लीषबो कीज्यौ | अर बंदा रांजा रांज स्यंघजी कै गया थां अर रांजा की हद सौ गरु बाहरी गयां अर नाहणी का रांजा की हद परै कोस 80 पहाड़ मै है सो हाथी आवणा कठणी है अर पातसाही मै यां षबरी है जो आजी सबा मै पकड़्या आवैगां सो आया अरज लिषौलो जी |

श्री महांरांजांजी सलामती - नवांब षाणषांना कै गुजरात सौ जोड़ी कासीदां की आइ तब नवाब कासीदा को हजुरी बुलाय पुछ्यां जो रांजा कहा है तब कासीदा अरज करी जो हम आबैरी होय आये सो रांजाजी आबैरी सौ कुच कीयां अर भाभरां कै मुतसली डेरां छै अर आबैरी मै होली षेलबा की तयारी कराइ छै तब नवाब कासीद महाबत षाजी पासी भेज्यां सौ नवाब महांबत षाजी सो भी कासीदा इही भाती अरज करी तब महाबत षाजी पीर महैमद षजानची को बंदां पासी भेज्यां जो या क्या षबरी हौ (sic!) तब बंदा कै नाव परवानो फारसी इनायत हुवां था सो बजनसी दीषांयां जो हमारै तो या षबरी आइ है जो महारांजा सीताब हजुरी आवै है अर कासीद षीलाफ अरज पहुचावै छै | तब नवांब फुरमाइ जो तुम रांजाजी को फेरी ताकीद लीष द्यौह सो माफिक हुकम नवाब कौ अरज पहुचाइ छौ जी | सो आबैरी जाणां मनासब नही जी फरद वाका की अररजदासती (sic!) मै भेजीं छै | सो दरबार की हकीकती मालुम होयली जी | मीती माह सु॰ 11 सं॰ 1767 |||||