Ansi | UTF-8 | Devanagari |
Vakil Report 153
|| महाराजाधिराज महाराज
|| श्री मीरजा राजा जै संघजी
||:|| स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री चरण कमलान षांनांजाद षाक पाय
पचोली जगजीवन दास लीषतं | तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का स्मांचार श्री महाराजाजी
के तेज प्रताप कर भला छै जी | श्री महाराजाजी का सीष स्मांचार सासता प्रसाद करावजो
जी | श्रीजी धणी छै साहीब छै | श्री परमेसुरजी री जाइगा छे जी | म्हे श्रीजी
का षानाजाद बंदा छा जी | पान गंगाजल आरोगण रा घणा जतन फुरमावजो जी |
| अप्रंच आगे स्माचार दरबार का की अरजदासत करी छै तां से स्मांचार श्रीजी
नै मालुम हुवा होसी जी |
| ओर दासजी का कुच कीया पछै षांनांजाद सहर मे कबीला नै राष अमीरल उमरावजी
की हजुर गयो नवाब भांत भांत षातर तसले करी सदा नवाब पास हांजर रहु वाजबल- अरज
गुजरानी ती की नकल हजुर भेजी हे सु नजर मुबारक गुजरसी चेत बदि 3 घड़ी दोइ रात
गयां नवाब षानांजाद नै पातिसाहजी की हजुर तसबीह-षांना मे ले जाय मुलाजमत कराइ
पाच मोहर नजर की सु माफ हुइ पातिसाहजी श्रीजी की भांत भांत षातर ज्मां फुरमाइ
अर वाजबल अरज मंजुर की ती की बीगत |
| मीरजा राजा को षीताब पावां सु मंजुर कीयो सु षीताब श्रीजी नै मुबारक होय
जी |
मनसब सात हजारी जात सात हजार सुवार ब-दसतुर मीरजाराजा के पावां सु मनसब की
नवाजस फुरमांन मे लिषी हे सु मालुम होसी |
| षीताब व मनसब की नवाजस को व इनायत महरबानगी को फुरमांन पावा हुकम कीयो लिषो
षानांजाद के हवाले करो अर महरबानगी कर षानांजाद नै सरपाव इनायत कीयो सु फुरमांन
व अरजदासत सवार ही हजुर चलायो है सु बोहत अदब सुं फुरमांन लीयो होसी वा (या ?)
के दाषल कराया होसी जी | सु श्रीजी महाराजाजी नै षीताब मनसब मुबारक होय जी |
पातसाह जहांदार साह होय चुका तषत बेठा अब सुकर गुजारी की अरजदासत व नजर भेजजो
जी | नजर मोहर 22 बाइस भेजी है सु मंजुर होय जी |
| महाराजा सलामत - चेत बदि 5 अजीम शां का मारा पछै दस दीन ताइ सुलाह की बाता
रही जहा साह इ मीती जहांदार साह नै कहाइ भेजी मुलक माल जी भांत तेमुर की ओलाद
बाट आया है ती भात बटसी आज हुं भी चढ षड़ो रहुं हुं थे भी चढ षड़ा रहो सु जहां
साह आइ मेदान मे षड़ो रहो जहांदार साह व रफी शा दोंनु मील चढ षड़ा रहा चेत बदि
5 सारे दीन तोपषांना की लड़ाइ रही चढा षड़ा रहा साझ नै उठे ही डेरा कीया चेत
बदि 6 सारे दीन लड़ाइ तोपषांनां की रही घड़ी चार दीन रहां फेर डेरा षड़ा कर डेरा
दाषल हुवा जहा साह डेरा मै जाइ घड़ी ऐक बेठ फेर सुवार होय षड़ो रहो अर तरवार
की ही मार करतो आयो जहांदार साह रफी शा भी चढ षड़ा रहा तीनुं तरफ का आदमी हजार
दोय दल बादल के नजीक तरवारा सुं काम आया अमीरल उमराव उपर तुर पड़ो मोरचा मै
साझ पड़ा जहा साह काम आयो ऐक बेटो मारो गयो दोइ छोटा बेटा पकड़ आया जहांदार शाह
व रफी अ षं सादीयानां बजाय डेरा फेर दाष (sic!) हुवा वेही दीन पहर रात गया जहांदार
साह रफी अ शां नै कहाय भेजो आगे काबल वगेरै ही सो थां को थो अब थे महारी रीफाकत
करी काबल के बदले पुरब जहां साह ने थी सु थे लो दषण चाहो दषण लो तब रफी अ शां
अरज कर भेजी जद सुं षुदाय नै दुनीया पेदा की हे जद सुं कीस ही नै पातिसाही मांगी
पाइ होय तो मे भी मांगु दीन नीकलते नीमाज के वकत लड़ाइ है अर तोपषानां अब ही
से छुटे अर हजरत भी रात को आराम करे हुं भी आराम करुं जवाब भेज तोपषांनां की
लड़ाइ तीन पहर रात ताइं भली भात हुइ | घड़ी चार रात पाछली रही तब रफी अ शां सुवार
होय षड़ो रहो जहांदार साह सुवार होय षड़ो रहो गोली तीर की मार करी | चेत बदि
7 भोमवार घड़ी दोय दीन चढता अमीरुल उमराव दोड़ो रफी अ शां की फोज भागी रफी अ
शां हाथी उपर सु उतर धरती उपर तीरंदाजी करण लागो जहा ताइं तीरंदाजी करतो रहो
तहां ताइं तीरा मै पोइ लीयो उठै ही रफी अ शां काम आयो सुलतान इबराहीम रफी अ शां
को बडो बेटो लड़ाइ मै काम आयो दोइ बेटा पकड़ लीया सु इ भांत अजीम शां व महमद
करीम मारा गया कोइ कहे हे महमद करीम गयो अर जहां शाह व रफी अ शां ऐक ऐक बेटा
समेत मार लीया अब जहांदार साह पातसाह होइ तषत बेठा
| महाराज सलामत - अब मनसब की तसदीक याददासत करावणीं जागीर लेणी परवानां करावणां
ती सु दरबार षरच की षरची की बेगी षबर लेजो जी | जो दासजी ही नै भेजणां षातर मै
आवे तो दासजी नै भेजजे ओर कोइ मुतसदी भेजणी (भेजणो ?) षातर मे आवै तो वे ने
भेजजो | अर षातर मे आवे ज वकील षीताब लीयो मनसब लीयो काम थो सु कर चुकां (चुको
?) जागीर मे जो परगनां लिषसां सुं तलास कर लेसी तो षरची दरबार षरच नै सीताब
इनायत होय जी |
| षानाजाद मनसब षीताब फुरमांन लीयो ती को नतीजो एसो पावजै सारा संसार मै नवाजस
जाहर होय |
| महाराजा अजीत संघजी का तो अठै कोइ थो नही भंडारीजी व गुलाल चंद वकील तो
देस उठ गया अर षानांजाद सु तो वाइंसी नवाजस करी थी जसो बरस की वकालत दुर करी
तीसं (sic!) बरस बीषा-मे चाकरी करी केइ बार मुजरा कर दीषाया पण जद ही जोधपुर
पायो तब ही वकील ओर करो पीण षानांजाद इ बात पर नजर न करी अर या जांणी ज श्रीजी
का षांनांजाद हुं इ बीरया मै वाका भी बंदगी कर दी ती पर फुरमांन व महाराजा को
षीताब व मनसब लीयो सु वांका भी फुरमांन श्री महाराजाजी कने भेजो है सु पोहचो
होसी | श्रीजी वां कने भेज दीयो होसी अब वा ने भी स्माचारा की अरजदासत भेजी
हे सु वां कने भेजजो जी |
| ओर अमीरल उमराव के ऐक तीर मोढा उपर लागो छे |
| ओर रुसतम दील षा ने व मुषलस षां ने गरदन मारो |
ओर हुकम हुवो छे अजीम की साथ जहा साह रफी अ शां की साथ लोग भागा है ताकी हकीकत
अरज करो ओर हकीकत होसी सु पाछा थे अरजदासत करस्यां जी |
मीती चेत बदि 9 संबत 1768 |||||