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Vakil Report 150
|| श्री महाराजधिराज महाराजाजी श्री
|| जै सिघजी
||:|| सिंधिं श्री महाराजधिराज महाराजाजी श्री चरन कमलानु षानाजाद षाक
पाय पां॰ जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का स्माचार श्री
महाराजाजी रा तेज परताफ थे भला छै | श्री महाराजाजी रा सीष स्माचार सासता परसाद
करावजो जी | श्रीजी माइत है धणी है | श्री परमेसुरजी री जायगां है | म्हे
श्रीजी रा षानाजाद बंदा हां पान गंगाजल आरोगण रा घणा जतन फरमावजो जी |
| अप्रंच दासजी नै भंडारीजी ले गेय्या (sic!) सु स्माचार तो पै दर पै
अरजदासतां कीय्या है दासजी हजुर पोहचा होसी जी |
| फागुण सुदि 10 गुर जहादार साह जहा साह रफी अ शां तीनु मोरचां मे चढ
षड़ा रहा अजीम उपर हलांकी अजीम भी आप का मोरचा मे चढ षड़ो रहो तोपषानां की
बडी मार हुइ म्हमद करीम जहां साह की तरफ का मोरचा उपर थो सलेमांन षां फीरोज
षां करीम का हरोल था सु यां जहा साह का मोरचा मे पेठ तोपषांनो षोस लीयो जहां
साह आप दोड़ो तोपषांनो छुडाय लीयो मेवाती व सलेमांन षां ने मार लीया अर करीम
के गोलो लाग गयो तब महाबत षां भागो महाबत षां का भागण सुं सब फोज अजीम की भागी
सु महाबत षां तो नदी पार भाग गयो |
अर ओर फोज जहा की तहां राह पकड़ौ केताक सहर मै आया केइ कही गया केइ कही
गया अजीम देषो फोज भागी तब हमा उ बषत नै व म्हल का लोग तो बुनगाह मै भेजा
तहां बडा डेरा कदीम षड़ा था अर अजीम भी भागो सु तीर या दोय तीन जाय फेर फीरो
फीरतां गोली लागी अर फोजां आय घेर लीयो जषमी बेसु मार हुवा जहादार साह के डेरे
ले गया चार घड़ी रात गयां मुवो सारां के फते की नोबतां बाजी जहादार साह का
डेरा तो अजीम की बुनगाह मे डेरा था तहां डेरो जाय कीयो अजीम का षजानां उपर
अमीरल उमराव जाय चोकी बेठाइ तोपषांनो तीनु वां का लोग ले गेया (sic!) लसकर
डेरा लुट गया जहासाह कोस का तफायत सुं जाय डेरा कीया रफी अ सां भी तफायत सु
डेरा कीया सहर मे दुहाइ जहांदार साह की फीरी राजा बहादर की षबर हे जषमी भागो
राजा उतम राम स्हर मे आयो सुणजे हे राव सकत सिघ मनोहरपुरा की षबर ठीक न्ही
साह नवाज षां हमीदुदी षां साह कुदरतुला की षबर न्ही मारा गया क भाग गया ये
स्माचार षां डेराय पड़ हार (?) छत्रसाल बुदेला को है सु उठा सुं आया ती कहा
अर राजा गोपाल सिघ के या षबर आइ |
| अब ताइं तीनु साहजादा उठै ही है तीनु तषत बेठा तीनु यां के छत्र फीरे
हे तीनु पातिसाह कहाये अब देषजै काइं चुकै सुल्ह ठहरी है सु ही रहे क लड़ै
होसी सु अरजदासत करसुं जी | अजीम का षजानां उपर देषजे काइं चुकै |
| कुल अषतयार अमीरल उमराव को है आसफ दोला नै षत लिषणो होय सु लिषजो अमीरल
उमराव ने लिषजो सुन्हरी-रुपहरी कीमषाब की थेलीयां भेजजो लषोटा भेजजो जी |
| फते की तषत बेठां की अरजदासत नजर पेसकस भेजजौ जी षानाजाद ने सीष सलाह
लीषणी होय सु लिषजो जी |
| गजसिघपुरा के हवालदार उपर हजार रुपयां को परवानो दीवानी आयो थो सु षानाजाद
मागा ज अबार नै पातिसाही बेठे हे षरच षरच दरबार मे पयादां को जरुर है सु
दो सु जवाब दीयो थां को हीमायती थो सु मारो गयो अब पुरो कोइ देसी क न देसी
न देतो हुं रुपया की पास लुं बोहतेरो स्मझायो पण न दीया मगरुर है ती सुं जीव
जो मो बेच दरबार मे तो साध न करसुं पण इ वकत मै छह हजार षानाजाद की तलब है
सु पाउं अर आगां सुं माह दर माह पाउं षांनाजाद की बे-सरंजांमी दासजी अरज की
होसी अर कुच भी सीताब होसी न डेरो हे न बार बरदार है ती सु सीताब षबर लीजो जी
अर दरबार षरच सीताब भेजजो जी |
| दोय चार दीन्मै (sic!) यां तीनु वां के चुक जासी तब दवाबवाला आय लागसी
ती सुं दवाब की षरची बोहत सीताब आवे जी |
| सां॰ 1768 फागुण सुदि 11 सुक्र दुपहरां |||||