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Vakil Report 114
|| महाराजाधिराज महाराजा श्री
जै सिघजी
||:|| स्वस्ति श्री महाराजाधराज (sic!) महाराजा श्री चरण कमलान षांनाजाद
षाक पाय पां॰ जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजौ जी | अठा का स्माचार
श्री महाराजाजी रा तेज प्रताप थे भला छै | श्री महाराजाजी रा सीष स्मांचार सासता
प्रसाद करावजौ जी | श्री महाराजा माइत हे धणी है | श्री परमेसुरजी री जायगा हे
| म्हे श्री महाराजाजी रा षांनाजाद बंदा हां | श्री पातिसाहजी श्री महाराजाजी
सुं अम्हरवांन है | श्रीजी सुष पावजौ जी पांन गंगाजल आरोगण रा जतन फुरमावजो जी
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| आगे अरजदासत काती सुदि 1 ने चलाइ हे ती सुं स्माचार मालुम हुवा होसी जी
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| अब काती सुदि 5 सन उ साह कुदरतुलाजी कै भंडारीजी व षांनांजाद गया अर दीवान
भीष्यारी दासजी ने तो दीन पांच सु आजार है सु अब फुरसत हुइ सु कुदरतुलाजी कही
हुकम हुवो है महमद अमी षां उपर गुरु मकहुर आयो चाहै है सु जो कदाच मकहुर महमद
अमी षां उपर आये तो दोनु राजा महमद अमी षां की मदत करै गुरु ने तंबीह करै |
| साह कुदरतुलाजी भंडारीजी ने कही थां का कहा मवाफक लाष लाष रुपयां की मै
अरज की ज साठ साठ हजार तो हजरत की नजर कबुल करे हे अर चालीस चालीस हजार साहब
आलम की पेसकस कबुल करे हे ती पर अमर हुवो अजीत सिघजी का तो लाष ही रुपया हजरत
की नजर करौ अर राजा जे सिघजी लाष रुपया दे-हे ती मे पचास हजार पातिसाह की नजर
करो अर पचास हजार म्हे लेसां ती पर कुदरतुलाजी कही अजीत सिघजी की तो ऐक लाष
ही की पेसकस हजरत की लिषे दौ अर पचास पचास हजार की दोय फरद लिष दौ ती पर भंडारीजी
तो लाष रुपयां की फरद आप की मोहर सुं लिष दी अर दासजी ने कही थे भी लिष दौ सु
दासजी कहै हे बीना हुकम न लिष दुं अब भंडारीजी कहे हे दोय लाष दोनु राजां का
पातिसाहजी की ही पेसकस लिष दां लाष लाष अर साहजादा ने लाष रुपया दोनु तरफ सु
जुदा दां पचास पचास हजार सु अब देढ लाष को करार करे हे सु दासजी तो कहे हे कांम
हमारा क्या हुवा ज देढ लाष दे सु हकीकत भंडारीजी भी दासजी भी अरजदासत करसी श्रीजी
को हुकम आयां जो लिषणो होसी सु दासजी लिषसी |
| काती सुद 2 दीवानी परवांनो षास मोहर सुं आयो ज षोहरी|बोहरी को परगनो सरकार
मे इजारै लीषो सु भली की मामनी प्रोहत साम राम की हे देस सुं मगाइ हे सु ठहराजो
अर षरच की हुंडी भेजां हां | महाराजा सलामत - षरीफ सु ही इजारो ठहरौ रबी का
चार म्हीना है मवाफक हुकम के या ठहराइ हे षरीफ मे जो अनुप सिघ लियो होय सु तुमार
मवाफक भर दै मुतसदीयां भी या बात कबुल की पण जामन मातबर मागे हे सु साम राम
ने हुकम होय आप का गुमासता ने लिषै जी | भांत नीसा होय ती भात कर दै अर सीताब
जामनी आवे षरीफ को हंगाम हे परगनो लेणो हे तो यो वकत हे फेर न जाणजे केसी बणे
अर की के नांव पटो लिषायां कबुलयत दां | श्रीजी सलामत - जेतपुरा म इजारा को चुका
दोय महीनां हुवा पण प्रोहतजी की जामनी ले न्ही ती सुं कांम बंद है प्रोहतजी का
गुमासता ने जेतपुरावालो कहे थां की मात-षरी सराफा मे कही कने कराय दौ सु गुमासता
मातबरी आप की कराय दे न्ही ती सुं प्रोहतजी ने हुकम होय गुमासता ने लिषे थे
आप की मात-षरी को लिषो सराफा का साहुकार कने लिषाय दीजो अर बोहरी को जेतपुरा
को माल जामनी दीजो |
| दवाब गुरा जीलकाद सुं सरबराह होसी |
| षांनाजाद की परेसानी लिषण सुं गुजर गइ अब षातर मे आये सु कीजै |
सां॰ 1768 काती सुद 6 रववार
| भंडारीजी सुं रदबदल हे सायद पचास हजार ओर बधाये|वे हे सु न बधे अर लाष
लाष कह चुका है पछो जो ठहरसी सु अरजदासत करसां जी |
आज म्हाबत षां का सु षीदमतां का स्याहा लेण ने जाय है अर षांनजाद तो हुकम
आयां साहा लेसी जी |