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Vakil Report 109
||:|| श्री रामजी सहायं
||:|| महाराजा सलामत - आगे अरजदासत भेजी है त्यां सुं समाचार मालुम हुवो होसी
| महाबत षांजी साफ जवाब दीयो तब भंडारीजी शाह कुदरतुला के डेरे रावटी षड़ी
कर जाय रहा कुदरतुलाजी सुं कही ज म्हाबत षांजी तो साफ जवाब दीयो म्हां को कोल
तो पातिसाहजादाजी सुं है तब कुदरतुलाजी कही म्हाबत षांजी नै बुलायो साहजांदाजी
सुं अरज करै तब कही म्हाबत षांजी तो साहजादा पास भी इ कांम के वासते न आवे तब
कुदरतुलाजी नवाब ने रुको लिषो थे साहजादाजी पास आयो म्हे थे मील साहजादाजी सुं
मील मसल्हत कर ठहरासां | तब काती बद 9 बुधवार चार घड़ी दीन रहां म्हाबत षांजी
साहजादा पास आय घड़ी दोय षीलवत रही | म्हाबत षांजी सुं पातिसाहजी काती बद 8
ने फुरमायो थो सु सब अरज की तफसील तो आगे अरजदासत की है ती पर साहजादैजी कही
म्हां सुं व पातिसाहजी सुं रदबदल हुइ | जद म्हे अरज की अजीत सिघ ने बराड़ दीजै
राजा जै सिघ नै पुरब भेजजै सु पहली तो कबुल की फेर अमीरल उमराव बराड़ की कबुल
न की | तब पातिसाह भी फीर गया सु बोहत गुफतगो हमारै पातिसाह के हुइ | तब मे
देषो कही तरह नही मांने | तब मै अरज की तीन चार बरस सु-लंमा (?) की तरह चली
ग जीही भात चलाया जाजै तो यां की अरज है सु ही कबुल कीजे न्ही | तो मु ने बीदा
कीजे हुं तबीह करसुं कै जहा हुकम होयलो तहां जायलो | जद तो हजरत भी तेस हुवा
म्हारे हजरत के बातां मे रस न रहो हुं भी चुप होय रहो हजरत भी चुप होय रहा |
सवार हुवां थां सुं अदालत मे कहणो थो सो कहो सु दोनु राजां ने ऐक ठोड़ तो हरगज
राषे न्ही | अर अजीत सिघ मालवा चाहे सु जहां शाह का सुबा हे कुंकर है | अर गुजरात
चाहे सु हजरत दै न्ही बराड़ अमीरल उमराव दे न्ही | तीस का का करणां | अब तुम
अरज करो वकील कहै है | सो तब महाबत षांजी अरज की म्हारी तो कुदरत न्ही ज हुं
वकीला की जुबानी अरज करुं | दोय तीन बार साहजादेजी कही पण महाबत षांजी तो कबुल
न की | घड़ी दीन रहो तब महाबत षांजी बारे नीकला | कुदरतुलाजी भी बारे नीकला
रोजायता (?) था सो डेरां गयां | काती बद 10 महाबत षांजी भी ये स्माचार कहा कुदरतुलाजी
भी कहा | अर महाबत षांजी भांत भांत घर बीध स्मझाया ज अबर-सराष (?) सो हुकम मान
सो तो रासती रहसी पुरब अजीत सिघजी जाय दषण श्रीजी जाय | अर शाह कुदरतुला भी
कहै है सु काती बद 10 सुधा तो यै स्माचार हजी ऐक झगड़ो महाराजा अजीत सिघजी को
है | अब भंडारीजी कहे हे अजीत सिघजी ने मालवो गुजरात बराड़ न्ही दो हो तो सोरठ
की ही फोजदारी दौ | सु देषजे काइं चुकै | अर श्री महाराज को तो झगड़ो कुछ न्ही
दषण की पुरब की तनाती सब भंडारीजी दासजी कबुल करै है | पण कहे हे अजीत सिघजी
परब भी न जाय दषण भी न जाय अर श्रीजी की कहे है ढाके बंगाले न जाय परयागजी बाणासीजी
ताइं जासी अर दषण मे चीजी बीजापुर हेदराबाद न जाय हजुर रीकाब मे नही आये दषण
मे बराड़ षानदेस बगला ने जहां हुकम होय तहां जासी | अर पातिसाहजी के भी श्रीजी
को कुछ झगड़ो न्ही हजरत जांणे हे ये सदा हुकमी हे जहां भेजसां तहां जासी | ती
सु अजीत सिघजी को झगड़ो है देषजे काइ चुके |
| वाजबल अरज मतलबां की महाबत षांजी ने लिष दी थी | सु महाबत षांजी साहजादा
जी ने दीषाइ थी | सु पढकर फुरमायो घर मे बेटे (sic!) महाराजा हुवा चाहे हे |
अर नागोर का झगड़ो इन कौ क्या जीस कुं हजरत की षातर मे आइ तीस कुं दीया यह वाजबल
अरज हजरत के दीषायणे की न्ही | महाबत षांजी कुं फेर दी |
श्रीजी सलामत - अमीरल उमराव श्रीजी सुं रजामंद है | म्हाबत षां तो कही जांण
सुं बुरो मांने हे | पण षांनाजाद छांने छाने कभी रात ने कबही सुवारी मे मुजरो
करे तो रहे हे | श्रीजी इषलास सदा जाहर कर-तो रहे हे | चारुं बकसीयां के दीवांनी
मे सब ठोड़ हाजर रहे हे सब सुं श्रीजी को इषलास बोहार राषे हे | सब रजामंद
है जी |
काती बद 11 सुक्रवार कुदरतुलाजी भंडारीजी नै दीवानजी ने षांनाजाद नै ले महाबत
षांजी के ले आया | सु महाबत षांजी तो वेही बातां कही | अर कुदरतुलाजी वेही
बतां कही | तब भंडारीजी कही ओर कुछ ही न बणे तो सोरठ की तो षाह ना षाह बणावो
| तब महाबत षांजी तो जवाब ही दीयो हुं अजीत सिघजी जै सिघजी को दुस्मन न्ही
आसनाव न्ही म्हारे वा के बीरादरी है वा की बाजी दुरसत रहां म्हारी बाजी दुरसत
रहै है हुं तो वा की भलाइ की होसी | सु ही कहसुं | अब यां की भलाइ पातिसाही
हुकम मै है थे सोरठ की कहो हो सु बे-मरजी हजुर की है बोहत रदबदल पाछै या ठहरी
| कुदरतुलाजी अजीम शांजी सुं अरज तो करै ज अजीम शांजी कबुल करै तो के सोरठ
की अरज अजीम करै कै महाबत षां अरज करै पछे जो हुकम होय सु सही | अर श्रीजी
के वासते पीरागजी की अरज करै पछे जो हुकम होय सु स्ही (sic!) | अब श्रीजी की
मसल्हत मे आवे सु हुकम सीताब आये जी |
षांनाजाद की परेसानी कहां ताइं अरजदासत करुं | दुसरे दुसरै दीन रोटी षाण-ने
जुड़े हे दीवानजी बीना हुकम दमड़ी दे न्ही कहे म्हारे पर तनषाह होय तो दुं
बीना हुकम कुं कर दुं ती सुं उमेदवार हुं केतो दीली का लाहोर का पुरा उपर मुकररी
तनषाह आये | पाछला छह महीने की हुंडी आये अर पुरा उपर न आये तो दीवान भी प्यारी
दासजी पर तनषाह आये मतलब षांनाजाद नीपट परेसान है जो कीजै सु परदाषत सीताब कीजै
जी |
| दवाब की सरबराही गुरै जीलकाद कु कबुल की है सु ऐक महीनो जीलकाद बीच है सरबराही
को सरजाम सीताब आवे जी | चीमनांजी की दवाब सरबराह करणी है |
सां॰ 1768 काती बद 12 सन 5 |||||