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श्री गौपालजी स्हाय छै
|| महाराजाधिराज महाराजा श्री
|| मीरजा राजा श्री जै सिघजी
||:|| स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री चरण कमलांनु षांनाजाद षाक पाय पां॰ जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का स्मांचार श्री महाराजाजी का तेज प्रताप कर भला छै जी | श्री महाराजाजी का सीष स्मांचार सासता प्रसाद करावजो जी | श्रीजी धणी छै साहीब छै | श्री परमेसुरजी की जाइगा छै जी | म्हे श्रीजी का षानाजाद बंदा छां जी | पान गंगाजल आरोगण रा घणां जतन फुरमावजो जी |
| अप्रंच आगे पे दर पे स्माचार लीषा छै ता सै मालुम हुवा होसी जी | ओर मीती चेत बदि 6 सोम पातसाह जहांदार साह के व जहां साह के घणीं लड़ाइ हुइ साझ ताइ लड़ता रहा कोता-हथयारा आइ गया पहला तो जहादार साह सीकसत षाइ फोज भागी जहां साह फते पाइ की-(---)--ज-द (?) जहांदार साह जुलफीकार षां सु कही गनीम जीता जाइ है जद जुलफीकार षां घोड़ा उठाइ पाछै पड़ो घणी मार करी दोनु तरफा सै आदमी घणा काम आया साझ पड़ा जुलफीकार षां जहां साह नै मार लीयो सादीयांना फते का बजाया पहर रात पाछली रहां रफी अस सां जाइ लड़ाइ नाषी (?) सु अब ताइ लड़े छै या को जोर घणो छै रफी अस सां कनै ज-(---) थोड़ी छै सु आज या भी फेसला होइ चुकसी जी | ओअर (sic!) षांनांजाद अमीरुल उमराव की मारफत पातसाह जहांदार साहजी की मुलाजमत करी मीहरबानगी फुरमाइ सरपाव षांनाजाद नै दीयो अर श्री मंहाराजाजी नै षीताब मीरजा राजा को व मनसब व फरमान लियो महाराजा अजीत संघजी नै षीताब महाराजाजी को व मनसब व फरमान लीया सु श्रीजी नै मुबारक हो जी फरमांन दोइ हजुर भेजा है सु स्मांचार मालुम होसी जी |
घड़ी दोय दीन चढा रफी अस सां भी मारो | मीती चेत सुदि 7 सं॰ 1768 |||||