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Arzdasht 349

|| महाराजाधिराज महाराज

|| श्री मीरजा राजा जै संघजी

||:|| स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराज श्री चरण कमलान षानांजाद षांक पाव पचोली जगजीवन दास लिषतं | तसलीम बंदगी अवधारजो जी | अठा का स्माचार श्री महाराजाजी का तेज प्रताप कर भला छै जी | श्री महाराजाजी का सीष स्मांचार सासता प्रसाद करावजो जी | श्रीजी धणी छै साहीब छै | श्री परमेसुरजी री जाइगा छै | म्हौ श्रीजी का षानांजाद बंदा छां जी | पान गंगाजल आरोगण रा घणा जतन फुरमावजो जी |

| अप्रंच आगे दरबार की हकीकत की अरजदासत आगे करी छै तां सै स्मांचार मालुम हुवा होसी जी |

| ओर हीदाइत केस षां वाके-नीगार कुल छै ती नै दासजी जाणे छै ती पातसाहजी सु अरज करी जु महमद करीम अठा सै चार कोस उपर छै आदमी दस बारा फकीर के भेस होय जुलाहा का घर मे छै घाव महमद करीम के लागा छै ता नै मरमत करे छै म्हारा आदमी चोक संकर आया छै अर म्हांरी चोकी बेठी छै जो म्हारी साथ फोज दीजे तो ले आउ सु जद ताइ रफी अस शां जहां साह की लड़ाइ न हुइ थी जद ताइ उठै ही घणी चोकसा-इ सुं रषायो लड़ाइ होइ चुकाया छै फोज साथे दे हीदाइतुला षां नै भेजो सु मीती चेत बदि 8 बुधवार घड़ी दोइ दीन चढा महमद करीम नै पकड़ लाया हीदायत केस षां आइ अरज करी जु ज बकसी होय कोल कर लाया हुं उमेदवार हुं करीम की जां बकसी होय सु पातसाहजी जां बकसी करी अर हीदायत केस षां उपर बोहत मीहरबानगी करी आगे ऐक हजारी को मन्सब थो सुं पांच हजारी जात चार हजार असवारा को मनसब दीयो सरपाव दीयो |

| ओर महाबत षां व षांन जमां षां व हमीदुदी षां नै केद कीये हुकम कीयो माल पेदा करो अर लड़ाइ मे हमारे साथ न आया सु की वासते

| सरफराज षा ने वे वै का बेटा ने कैद कीयो सरे दरबार बे इजत कर महाबत षां कने बेठायो |

| लुतफुला षां व जानी षां केद कीया था ता नै हुकम कीयो जु गरदन मारो सु कोकलतास षां व लुतफुला षां ऐक मुलक का है सु अब ताइ तो कोकलतास षां बचायो छै ती नुं पातसाहजादा का वकील नै हुकम हुवो मा-र-ना(--) |

| ओर हुकम हुवो छै जो पातसाहजादा दस दस बीस बीस असवारा से काम आया अर करोड़ां को षजानो सीपाही ले गया बेठ रहा लड़ाइ मै हाजर न रहा ती सुं जो या तीनुं पातसाहजादां का दाग का घोड़ा नीकले तथा लुट जाहर होय तां का घर षालसे करो गरदन मारो |

| राजा बहादर को दीवांन मीलो थो सु कहे थो महमद करीम भागो जद कहाइ भेजो जु कहो तो थां भेला हो-वा ती उपर राजाजी कहाय भेजो म्हांरे साथ कबीलो छै |

| ओर षीताब तथा मन्सब फुरमान ले भेजा छै सु अब तसदीक याददासत तथा परवाना नै षरच चाहीजै साह गज संघ नै षरच के वासते कहो थो सु वे सु ऐक हजार रुपया भी सरंजाम न हुवो तो ओर कठा सु सरंजांम करै ती सुं श्रीजी षरच को सरंजाम सीताब कर भेजजो जी |

मीती चेत बदि 9 गुर संबत 1768 |||||