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श्री रांमजी
श्री महाराजाधिराज सलामति
आगै अरजदासति करार मिती चैत सुदि की भेजी हैं तिं सौं सारी अरज पहुंची होयगी जी |
श्री महाराजाजी सलामति - पातसाही लसकर थे श्री हरदुवारजी कोस तिस पैंतीस था | सो बंदे नवाब महाबत षांजी सौं सिष मांगी जो हुकम होय तौ राति बसैं छरी सुवारी श्री गंगाजी सनांन करि आंउ | सो नवाब महाबत षांजी फुरमायौ जो तुम्हारा जांना मुनासिब नही दुसमन पातसाहजी सौं और ही भांति अरज पहुंचावै अर पातसाहजी के उसवास होय तौ षुब न्ही | सो बंदा हरदुवारजी ने सौं बैठि रह्या जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - पहैली तौ या षबरि आइ थी जो समस षां कांम आया अर बाजीद षां जीवै है | अर गुरू के सिष्यौं सौ लड़ै है | सिष्यौं सिकसत षाइ | अब या षबरि आइ जो दोंनौ ही कांम आऐ अर गुरू के सिष्यौं जोरा बहौत पकर्या प्रगना बटाला का लोग बसत भाव सब छोड़ि अर भाज्या कीरोऔं (sic!) की मताह ज्यौं-की ज्यौं परी रही |
श्री महाराजाधिराज सलामति - पातसाहजी वाकानवीस पर गुसे होय गुरजबरदारा बिदा कीया है | अर यौ हुकम कीया है जो उस का सिर काटि हजुर लै आवौ की जंजीर करि पयादा हजुरि लै आवो | सो गुरू जबरदार तौ हजुरि सौं चले हैं देषैं अब उस के बाब क्या हुकम होय वाकानवीस तौ सांच वाकै दाषिल कीया था |
श्री महाराजाधिराज सलामति - फुरमान दोनौ राजौं के तयार हुऐ हैं | दिन दोय तिन मौ चलैंगे | महाबत षांजी के बहौत ताकीद है अर नवाब महाबत षांजी सौं पातसाहजी बहौत मिहरवांनगी फुरमावै हैं | षिलवति मौ बुलाय रदबदल करैं है जी | अर साहिजादा अजीमुसांजी बहौत मुतवजहै हैं जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - मीती चैत सुदि 9 सनीसरवार नवाब महाबत षां बंदे कों बुलाय पुछा जो राजौं की क्या षबरि है तब बंदे षत राजा अजीत स्यंघजी वा प्रवांनौ श्री जी बंदे के नाव सादिर हुवा था सो गुजराना तब षत हींदुइ तौ बंदे कौ सौम्पि दीया अर प्रवानौ पढि आपनी जेब मौ राषा फुरमाया जो तौ पातसाहजी कौं गुजरांनैगा सो पातसाहजी सौं अरज करी सो पातसाहजी फुरमाया जो अजीत स्यंघ के वकील सौं ताकीदि करौ हकीकति अरज पहुंचावै सो भंडारी के जोड़ी अजीत स्यंघजी की आइ तिस-मौ साहिजादाजी कौं अरजदासति आइ हकीम सलेम कौं षत आया नवाब महाबत षांजी कों पुरसा का षत आया वा इजाफा वा षिताब हुवा था तिस का मुबारकबाद आयौ सो भंडारी नवाब कों गुजरांना तब भंडारी कों माफिक हुकम पातसाहजी के नवाब ताकीदि फुरमाइ जो लिषौ सिताब आंवै वकत कांम का है |
श्री महाराजाधिराज सलामति - महाराजा अजीत स्यंघजी अरजदासति साहिजादाजी कौं वा षत हकीम सलेम कौं वा नवाब महाबत षांजी कौं मुबारकबाद का आया अर सरकार की त्रफ का अब तक न आया सो अब सिताब इनायत होय जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - मी॰ चैत सुदी 10 दीतवार पातसाहजी का कुच लाहौर कौं हुवा | षबरि या है जो तिस (--------)-ह लाहौर मंजल द्र मंजल चलैं जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - हुकम आया जो दाउद षां के नव अमीरल उमराव का षत औरंगबाद के पुरा बाबति लिषाय भेजियौ | सो बंदे माफिक हुकम के जगजीवन दास कों भेजा था सो जगजिवन दास अमीरल उमराव सौं अरज करी तब नवाब फुरमाया जो राजाजी का षात हम कों आवैगा | तब हम दाउद षां कों षत लिषि देंगे | सो थैली तौ बंदा पास थी पा-(---) | अलकाब बिना षत लिषा जाय नही | सो बंदा उमेदवार है जो षत तथा अलकाब अमीरल उमराव कौं सिताब इनायत होय |
श्री महाराजाधिराज सलामत - हुकम आया जो मोजाबाद की पहैली किसति के रुपया सरकार का गहैणां धरि दीया सो भलां करी सो षांनाजाद उमेदवार है जो हुंडी सिताब इनायत होय जी | मोहकंम स्यंघजी के परेसांनी ज्यादा है दुसरी किसत पुजे पइसा मगैंगे जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - बंदे के नाव पारसी प्रवांना इनायति हुवा था बाबति कुंच राजा अजीत स्यंघजी के मेड़ता सौं सो आंनि पहुंचा बंदा सरफराज हुवा बंदा चाहै था जो प्रवांना नवाब महाबत षांजी को गुजरांनौ तब भंडारी षीवसी षबरि पाइ तब कहाय भेजा जो पहैली प्रवांनौ म्हां नै पढाज्यौ | जब नवाब नै दीषाज्यौ तब मै प्रवांना भंडारी कौं देषाया | दोदराज मुनसी सौं पढाय फेरि बंदे सौं कहा जो हम राति कों नवाब महाबति षांजी पास गऐ थे | अर षत राजा अजीत स्यंघजी का आया था सो गुजरांना सो नवाब म्हां सौं ताकीदि करी तब म्हे अरज पहुं पहुंचाइ (sic!) जो आज तांइ सांभरि पहुंचे होयंगे | तुम या प्रवांना गुजरांनौ मती इं प्रवांना सौं म्हे झुठा परस्यां तिस वासतैं बंदा नै प्रवांना नवाब कों न गुजरांना जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - लसकर मै साहिजादौ की व उमरावों वार-बरदारी के उंत मुकांमाति की षबरि पर कोस पचीस तीस चरनें गऐ थे पातसाहजी अचांनचक का कुंच कीया सो इस मंजल तौ जिस तिस भांति बार पांच पांच सात सात फिरि बार बरदारी ल्याऐ तब सबौं पातसाहजी सौ अरज करी जो इन डेरौं दोय मुकांम होंय | तब पातसाहजी फुरमाया जो मुकांम कोइ करौ मती हुकम हुवा जो पेसषांना चलै सो मिती चैत सुदि 11 सोमवार पेसषांना आगें कौं चला हुकम हुवा जो पंच कोस सौं मंजल कमि न होय |
श्री महाराजाधिराज सलामति - रुसतम दिल षां कौं सिरपेच इनायत करि दस हजार सुवार की फौज साथे दे आगे कों बिदा कीया | हुकम हुवा जो ऐक मंजल आगाउ चला जाय |
श्री महाराजाजी सलामती - रांम स्यंघ रुप स्यंघ का बेटा जो (-----------) तिस का मनसब मारफति साहिजादा रफीसां बहादर की नौ सदी छ सै सुवार का हुवा है | सो सनंद साहिजादाजी के जसौल तयार करांवै है | सो रांम स्यंघ बंदे के देरे (sic!) आय कही जो स्यौ स्यंघ की तौ पुरी परी अर हरांम-षोरी उन के माथे ठाहरी तुम ऐक अरजदासति हजुरि कों करि द्यौ जो हुं हजुर जाय चाकरी करौं बाजबागीर जो महाराजाजी बकसैंगे सो षाय दौरि चाकरी करौंगा | इस मनसब लेने सौं मेरा भी जनम षराब होता है | तब बंदे जुवाब दीया जो बिना मरजी हजुरि की मेरे पास अरजदासति करी जाय नही | तब कहा जो मेरे वासतैं हजुरि कों अरजदासति करौ जो दिलासा को प्रवांनौ आवै तौ हजुरि जांव | जै षात्र ममारक मै पसंद आवै तौ उस के नाव प्रवांना सादिर होय जी |
श्री महाराजाधिराज सलामति - बंदा लसकर मै सबब महैंगाइ के सबब बहौत परेसांनी षैंची वा करज बहौत हुवा | सो जांन माल सब श्री जी का है जिस मै सब (------------) करैं | सो हुकंम फुरमावैंगे जी | अर दयारांम पेसदसत हकीकति अरज पहुंचावैंगा जी |
श्री महाराजाधिराज सलामती - पातसाहजी लाहौर पहुंचने का अठा रा कुंच अठा रा मुकांम मुकरर कीया छैं जी |
मी॰ चैत सुदी 12 संवत 1768 |||||